ब्राह्मणवाद की आलोचना के मेरे एक कमेंट पर एक मित्र ने पूछा मैं क्या हूं? उस पर:
Aditya Anandएक शुद्ध इंसान, जाति तथा देशकाल से परे. मेरी जाति या देश-काल की अस्मिता एक जीववैज्ञानिक दुर्घना का परिणाम है, मेरे सायास प्रयासों का नहीं, जिसमें मेरा न तो योगदान है, न अपराध; जिस पर न मुझे गर्व है न शर्म. मैं अपने प्रयासों से क्या करता सोचता हूं, वह मेरा है, वह मैं हूं. जो पीयचडी करके भी बाभन से इंसान न बन सके, उसके बारे में क्या कहा जाए? बाभन से इंसान बनना एक मुहावरा है जिसका मतलब है, जन्म के संयोग की अस्मिता से ऊपर उठकर कर्म और विचारों से एक तर्कशील व्यक्तित्व निर्माण करने पाने की अक्षमता. यह मुहावरा मेरा अन्वेषण नहीं है, प्रशिद्ध इतिहासकार प्रो. आरयस शर्मा के कथन का इंप्रोवाइजेशन है. एक बार बातचीत में उन्होने कहा, "भूमिहरवे मानते ही नहीं कि मैं स्कूल में ही भूमिहार से इंसान बन गया". मैंने हंस कर कहा था, "सर मैं भी स्कूल में ही बाभन से इंसान बन गया."
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