Monday, September 5, 2016

हर्फ-ए-सदाकत

लिखता ही रहेगा मेरा कलम हरफ-ए-सदाकत
रोक नहीं सकती इसे ज़ुल्मत की कोई भी ताकत
लिख रहे हों जब दानिशमंद सज्दों का अफसाना
लिखना ही है मेरे कलम को बगावत का तराना
बन रही हो ग़र सर झुकाके चलने की रवायत
लाजिम है बचाना सर उठाके चलने की आदत
फिरकापरस्त कहर से बचाना है गर कायनात
रोकना होगा शेख-बिरहमनों की फरेबी खुराफात
अंधेयुग के किलेदार से न होगा मेरा कलम भयभीत
बेख़ौफ लिखता रहेगा इस अंधेयुग के बेबाक गीत
(बस यों ही कलम फिर आवारा हो गया)
(ईमि: 05.09.2016)

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