Sunday, September 4, 2016

बेतरतीब 11

Vijender Masijeevi मैं तो आपातकाल में 'भूमिगत' अस्तित्व की संभावनाओं की तलाश में दिल्ली आने बाद अगले 9 साल आजीविका के लिए गणित पर निर्भर रहा. मेरा पहला ट्यूसन का विद्यार्थी मेरे दोस्त का दोस्त था. मैं 21-22 का था वह 17-18 का, पहले ही दिन हम दोस्त हो गए. स्कूल की परीक्षाओं में उसे 40-45% मिलते थे. पहले ही दिन बोला, "Yaar! maths is such a dry and boring subject." उस समय जो फौरी जवाब मुंह से निकला, वह मैं हर पहली क्लास में बोलता था, "Mathematics is that branch of knowledge, which trains our mind for clear thinking and reasoning. " उस दिन Coordinate Geometry शुरू करना था. बोला, "and coordinate geometry is most boring." मेरे मुंह से निकला, "Geometry is that branch of mathematics that trains our mind for clearer thinking and reasoning." क्षमा करना यार मैं तो आत्मकथा सा लिखने लगा. खैर, उसके बाद के पहले होम एक्जाम में उसके 80 से अधिक आए और फाइनल में अविश्वसनीय 97%. 1981-85 के दौरान मैं जेयनयू में राजनीति पढ़ते-करते हुए, डीपीयस (आरकेपुरम्) में गणित पढ़ाता था तो हर पहली क्लास में यही डायलॉग बोलता था. दर-असल ज्यादातर गणित के शिक्षक खुद फार्मूला रट कर इम्तहान पास किए होते हैं, विद्यार्थियों को भी अवधारणा की व्याख्या की बजाय महज सवाल हल करना सिखाते हैं. बुढ़ापे की आवारागर्दी खतरनाक होती है, वह भी बौद्धिक! सोचा था 2 वाक्य लिखने को और पोथा लिखने लगा. तुम दोनों एक दिन बच्चों से मुझे मिला दो. स्कूल में आश्चर्य से सोचता था कि कोई किसी और विषय में फेल हो जाए तो समझ आता है, कोई गणित जैसे सीधे-सरल विषय में कैसे फेल हो सकता है? मामला 'जाके पैर न फटै बेवाई' वाला था. 'गदहिया गोल' (प्री-प्राइमरी) में एक लड़के ने 20 से ऊपर का पहाड़ा रट लिया. मेरी रटंत क्षमता शुरू से ही खराब रही है. मुझे एक ट्रिक मालुम हो गयी और मैं 33-34; 76-77.... किसी भी संख्या का पहाड़ा सुना सकता था. हमारे शिक्षक को क्या लगा कि मुझे गदहिया गोल से 1 में प्रोमोट कर दिया. डिप्टी साहब (यसडीआई) के मुआयने में 5 वाले एक सरल सा अंकगणित का सवाल नहीं बता पाए (कक्षा 4 और 5 की कक्षाएं एक ही कमरे में होती थी), मैंने बता दिया और 4 से 5 में प्रोमोट हो गया, नतीजतन हाई स्कूल की परीक्षा में न्यूनतम आयु के लिए मास्साहब ने ज्यादा उम्र लिख दी. (आत्म-प्रशस्ति में तो नहीं फंस रहा हूं? लेकिन अब क्या, अब तो फंस ही गया. ) डीपीयस के बच्चे बहुत दिन तक मुझे टीचर मानने को राजी ही नहीं थे. उन्हें थ्री-पीस में सजे-धजे और अनुशासन के आडंबर वाले शिक्षकों की आदत थी, यहां जेयनयू का कुर्ता-जीन्स वाला दोस्ताना लहजे का 'टीचर'? लेकिन एक बार मान लिया तो मुझे ही टीचर मानते थे. मैं तो इतने बड़े स्कूल में 11-12वीं के 3 सेक्सन पढ़ाता था, लेकिन सब मुझे टीचर मानते थे. कइयों ने फेसबुक पर संपर्क किया. 1985 में डीपीयस छोड़ने के बाद तय किया कि जब तक भूखों मरने की नौबत न आए, गणित का इस्तेमाल धनार्जन के लिए नहीं करूंगा, और आई नहीं. अब तो गणित की सारी किताबें बांट चुका हूं, 2-4 बटी हैं किसी सुपात्र के मिलते ही दे दूंगा. नतीजतन 31 साल से गणित की कोई पुस्तक नहीं पलटा, अब कभी वक़्त नहीं मिलेगा. बच्चों के गणित से डर का कारण, मुझे लगता हैः 1. मां-बाप बचपन से गणित का ट्यूसन लगाकर बच्चों के दिमाग में गणित का हौव्वा खड़ा कर देते हैं. 2. शिक्षक बच्चों को अवधारणाएं स्पष्ट न कर सवाल हल करना सिखाते हैं. मॉफ करना, थोड़ा नॉस्टैल्जिक हो गया.

No comments:

Post a Comment