Thursday, February 27, 2020

लल्ला पुराण 263 (दिल्ली के दंगे)

15-20 साल के लड़के जो उन्माद में मरने-मारने पर उतारू हो गए थे उनका दंगों में कोई हित नहीं है, उनके अंदर लगातार जो नफरत का जहर भरा जाता रहता है उसमें वे पागल हो जाते हैं, आजकल सोसल मीडिया पर हिंदू-मुसलमान करके वही जहर भरा जा रहा है। कपिल मिश्र जब डीसीपी को दंगे की धमकी दे रहा था तभी उसे रोक दिया गया होता तो इस कोहराम को रोका जा सकता था। इवि के हमारे सीनियर सेवा निवृत्त आपीएस, साहित्यकार विभूति नीरायण राय ने स्वराज एक्प्रेस चैनल पर पैनल डिस्कसन में दिल्ली पुलिस की 'नालायकी' के संदर्भ में बताया कि दि्ली पुलिस चाहती तो आधे घंटो में दंगा नियंत्रित कर सकती थी, लेकिन 3 दिन चलता रहा, गुजरात में 2002 में 3 महीने चलता रहा था। आधे घंटे वाली बात उन्होंने 1987 में निजी बातचीत में मेरठ-मलियाना के दंगों के समय भी बताया था। उस समय वे गाजियाबाद मेे डीआईजी थे इसलिए लेख में उन्हें उद्धृत नहीं किया था। अब पूरे देश का गुजरातीकरण हो रहा है। गणेश शंकर विद्यार्थी ने 1923 में दंगों के बाद प्रताप में लिखा था कि कुछ चतुर-चालाक लोग धर्म के नाम पर आमजन को उल्लू बनाकर लड़ाकर अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं, जिसे रोकने के लिए गंभीर उद्यम की जरूरत है, आज जब देश जल रहा है, और भी गंभीर उद्यम की जरूरत है। वारिश पठान और कपिल मिश्र जैसे दंगाइयों को हिरासत में लेकर मिशाल कायम करने की जरूरत है। शूट ऐट साइट के आदेश से दंगाइयों के दिलों में दहशत पैदा करने की जरूरत है। 'खून अपना हो या पराया, नस्ल-ए-आदम का खून है' (साहिर)। सादर।

Wednesday, February 26, 2020

लल्ला पुराण 262 (दंगा)

दंगाई को हिंदू मुसलमान में बांटने और सेकुलरिज्म को जहर बताने का मतलब यह भी है कि कम्युनविज्म अमृत है। हिंदू-मुस्लिमसे ऊपर उठकर सभी दंगाइयों की भर्त्सना कीजिए चाहे वह वारिश पठान हो चाहे कपिल मिश्र। आप तथ्य-तर्कों से समझा दें तो मेरा विचार क्यों नहीं बदल सकता लेकिन बदल कर विवेकशील इंसान से सांप्रदायिक दंगाई तो बन नहीं सकता। मुल्क बहुत कठिन दौर से गुजर रहा है, इसमें विवेक की जरूरत है, आइे मानवताऔर अमन-चमन की दिशा में काम करें। अभी करावलनगर से आ रहा हूं वहां दोनों मजहबों के लोगोंने मिलकर एकता के नारे लगाए और दंगाइयों तथा उन्हें प्रश्रय देने वाले पुलिस वालों को खदेड़ दिया, वहां एनडीटीवी वाले शूटिंग कर रहे थेदोनों मजहबों को लोग मानव श्रृंखला बनाकर बच्चों को स्कूल भेज रहे थे, गुरुद्वारे किसी भी पीड़ित के लिए खोल दिए गए हैं।

फुटनोट 359 (शाहीन बाग)

एक ने लिखा कि शाहीन बाग में लंगर चलाने वाले सिख की दुकान मुसलमानों ने जला डाली, दूसरे ने उन्हे खालिस्तानी घोषित कर दिया और यह कि उन्हें खालिस्तान (?) से करोड़ो मिल चुके हैं, उस पर:

दंगे सरकार द्वारा प्रायोजित थे, जैसा कई वीडियो में दिख रहा है, पुलिस की देख-रेख में हुए। दोनों समुदायों की तरफ से हिंसा हुई, हमेशा की तरह हत्या और आगजनी केशिकार मुसलमान ज्यादा हैं। लेकिन अफवाहें बहुत उड़ रही हैं। आईटी सेल का अफवाह ब्रिगेड बहुत कर्मठ है। एक ही अफवाह शब्दशः तमाम जगहों पर सुनाई देती हैं। 2002 में गुजरात में गोधरा, आनंद, वड़ोदरा हर जगह एक अफवाह सुनने को मिली कि कल्लोल जिले में एक गांव (नाम भूल रहा है, रिपोर्ट देखनी पड़ेगी) में एक तालाब के किनारे 3 हिंदू औरतों की लाशें पाई गयीं जिनके स्तन कटे थे। ऐसी खबरें बहन-बेटियों की इज्जत के नाम पर फैलाई जाती हैं। हम लोग उस गांव में पहुंचे तो पता चला वह केवल पटेलों का गांव है और उस गांव में कोई तालाब नहीं है। हुआ यह था कि एक गुजराती अखबार ने यह खबर छाप दी और नीचे छोटा सा नोट कि प्रेस में जाने तक खबर की पुष्ट नहीं हो सकी है। दंगों में अफवाहें अहम भूमिका अदा करती हैं। दंगाई अफवाह यह भी है जो श्रीवास्तव जी फैला रहे हैं कि लंगर वाले सरदार जी खालिस्तानी हैं।

लल्ला पुराण 261 (सीएए)

मैं तो सोचता था कि हिंदुओं में बाभन, अहिर, चमार, कुर्मी, भुंइहार .. आदि कोटियां होती हैं जिनमें बाद की कोटियां बाभनों को युरेशियाई कहकर प्रताड़ित करती हैं, आपने बताया हिंदुओं में हरामियों की एक अन्य कोटि भी होती जिनके बाप रोहिंग्या होते हैं और जिन पर गैर हरामी मौन रखतेहैं। नई जानकारी का आभार।

Uday Bhan Dwivedi इतने समझदार हम कहां? हम तो पूछ रहे हैं कि कौन कौन हिंदू हरामी होते हैं कौन गैरहरामी। गैरहरामियों में सब ब्राह्मण ही होते हैं या आरक्षण के नाम पर उनका हक मारने वाले ओबीसी और दलित भी? मुझे तो यह भी नहीं मालुम कि सीएए के हिंदू विरोधियों का बाप कोई रोहिंग्या है। हमने तो रोहिंग्या देखा नहीं है सुना है म्यांमार के प्रताड़ित बासिंदे हैं, शायद इंसान ही होंगे।

सीएए का समर्थन करने वाले सब जातियों वाले गैरहरामी हैं कि केवल बाभन?

Uday Bhan Dwivedi इतने समझदार हम कहां? हम तो पूछ रहे हैं कि कौन कौन हिंदू हरामी होते हैं कौन गैरहरामी। गैरहरामियों में सब ब्राह्मण ही होते हैं या आरक्षण के नाम पर उनका हक मारने वाले ओबीसी और दलित भी? मुझे तो यह भी नहीं मालुम कि सीएए के हिंदू विरोधियों का बाप कोई रोहिंग्या है। हमने तो रोहिंग्या देखा नहीं है सुना है म्यांमार के प्रताड़ित बासिंदे हैं, शायद इंसान ही होंगे।

Uday Bhan Dwivedi आप ने लगाया है आप ही बताएंगे कि किन हिंदुओं को यह हरामी कह रहा है? हम तो सीएए विरोधी प्रदर्शनों से जुड़े हैं, 2 बार जामिया, 2 बार शाहीन बाग और 30 जनवरी को राजघाट, 25 फरवरी को मुजफ्फरपुर तथा 22 फरवरी को रांची सीएए विरोधी कार्यक्रमों मे भाषण भी दे चुके लेकिन मेरे पिता जी शायद रोहिंगया तो नहीं ही रहे होंगे, उनके पिताजी यद्यपि अपनी जवानी में बर्मा में रह चुके थे कुछ दिन। आपके पोस्टर की सीएए विरोध की शर्त पूरी करता हूं रोहिंग्या की औलाद की नहीं, वैसे भी मैं तो हिंदू हूं नहीं क्योंकि हिंदू होने के लिए किसी जाति का होना चाहिए लेकिन मैं तो पैदा बाभन जरूर हुआ था लेकिन बहुत पहले बाभन से इंसान बन गया और नास्तिक। तो पता नहीं हरामी की कोटि में आऊंगा या गैरहरामी का? आप से इसी लिएस्पष्ट करनेको कहा।