बड़े परिवर्तन के लिए दो कारकों की जरूरत होती है -- ऑबजेक्टव (व्यवस्था का संकट) तथा सब्जेक्टिव (संगठित परिवर्तनकामी ताकत)। सबजेक्टिव फैक्टर कहीं दूर दूर तक नहीं दिख रहा है। स्वतःस्फूर्त आंदोलनों की सीमाएं होती हैं। जरूरत सैद्धांतिक स्पष्टता के साथ बॉल्सेविक किस्म की संगठित ताकत की है। मौजूदा प्रतिरोध आंदोलनों को समेकित करने का उपाय नहीं दिख रहा है। वैसे इन्हीं आंदोलनों से नेतृत्वकारी ताकतें पैदा होंगी। फिलहाल तो संसदीय विपक्ष को सक्रिय होने की जरूरत है।
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