कहीं भी कोई भी किसी भी अन्याय अत्याचार की बात करता है तुरंत सवाल उठाया जाता है, आप कश्मीरी पंडितों की बात क्यों नहीं करते? यह सवाल पूछने वाला यह नहीं बताता कि उसने खुद कश्मीरी पंडितों के बारे में क्या किया या लिखा है? यह वाकई सोचनीय बात है कि लाखों लोग एक झटके में दर-बदर हो गए। मेरे बहुत से कशमीरी मित्र हैं पंडित भी और मुसलमान भी। 1988 तक गाटी शांत थी। चुनाव में गड़बड़ी और नेसनल कांन्फरेंस में फूट करवाकर राजीव गांधी द्वारा कठपुतली सरकार बनवाने के प्रयास से भड़की चिंगारी ने 2 साल में घाटी में दावानल का रूप ले लिया। सितंबर 1989 में राजनैतिक कार्यकर्ता टीका लाल टापली को गोली मार कर कुछ आतंकी नरपिशाचों ने हत्या कर दी। जनवरी 1990 में कई मस्जिदों पर आतंकियों ने कब्जा कर पंडितों के खिलाफ धमकी भरे नारे लगाए, उन्हें घाटी छोड़ने की धमकियां दीं। उस समय केंद्र में भाजपा तथा माकपा के समर्थन से वीपी सिंह की सरकार थी, कश्मीर में राष्ट्रपति शासन था तथा बाद में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार मेें मंत्री बने, आपातकाल में संजय गांधी का खास कारिंदा रहे जगमोहन कश्मीर के राज्यपाल थे। जगमोहन ने घाटी में मौजूद फौज से पंडितों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की बजाय फौज की ट्रक का इंतजाम उनके भागने के लिए किया और जम्मू में शिविरों का निर्माण शुरू किया। 2010 में हम घाटी में अब भी रह रहे कुछ पंडित परिवारों से मिले जो अपने मुसलमान पड़ोसियों के साथ सुरक्षित महसूस करते हैं। पंडितों के खाली आलीशान घर समय के चपेटों से हुई क्षति के अलावा जस-के-तस खड़े हैं। हमारे इलाके में तो कोई घर एक महीने खाली रहे तो दरवाजे-खिड़कियां ही नहीं ईंटे तक लोग उठा ले जाएंगे। मुसलमान अपने पंडित पड़ोसियों की वापसी के लिए बेताब दिखे।
कश्मीरी पंडितों का मुद्दा सांप्रदायिकता का ईंधन-पानी बना हुआ है। श्रीनगरके लालचौक में हमारी मुलाकात घाटी के पंडित संगठन के अध्यक्ष संजय चिकलू से हुई, लालचौक में उनकी दुकान है। पंडितों की वापसी के सवाल पर उन्होंने कहा था कि यदि उनका शरणार्थी का दर्जा, वजीफा और आरक्षण समाप्त हो जाए तो काफी पंडित वापस चले जाएंगे। उनकी बात में मुझे अतिरंजना लगी लेकिन यदि सरकारें चाहें तो पंडितों की घाटी में वापसी असंभव नहीं है। 6 साल अटल बिहारी के नेतृत्व में भाजपा सरकार रही, 2014 से केंद्र में मोदी नीत भाजपा सरकार तथा कश्मीर में काफी दिन भाजपा समर्थित महबूबा सरकार रही लेकिन भाजपा पंडितों के मुद्दे का अपना ईंधन पानी गंवाना नहीं चाहती। घाटी से बाहर पंडितों को सुविधा की बात तो ये सरकारें करती रहीं, लेकिन उन्हें वापस वहां बसाने की नहीं।
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