एक युवा मित्र को किसी संगोष्ठी में किसी ने वामपंथ को देश के लिए घातक तथा कन्हैया को देशद्रोही बताने के साथ आधुनिक शिक्षा की निंदा करते हुए प्राचीन शिक्षा व्यवस्था को उत्कृष्ट बताया, उन्होने मेरी राय पूछा, उस पर:
भारत की प्राचीन बौद्ध शिक्षा व्यवस्था जनतांत्रिक विचार-विमर्श की द्वंद्वात्मक, वैज्ञानिक शिक्षा व्यवस्था थी जिसे ध्वस्त कर ब्राह्मणवादी प्रतिक्रांति ने वर्णाश्रमी, अधिनायकवादी गुरुकुल व्यवस्था कायम किया, जिसमें गुरुर्देवो भव का सिद्धांत लागू था। उसकी बात अंतिम सत्य होती थी। इस व्यवस्था में सवाल पूछने की गुंजाइश नहीं थी। स्त्रियाों और शूद्रों (कामगर समुदायों) का प्रवेश वर्जित था। कन्हैया को देशद्रोही कहने वालों से पूछो, देश द्रोह होता क्या है? शिक्षा की सार्वजनिक सुलभता अंग्रेजी राज का अनचाहा उपपरिणाम है, जिसने शिक्षा पर सवर्णों, खासकर, ब्राह्मणों के एकाधिकार को चुनौती दी। आरक्षण पारंपरिक वंचना की आंशिक भरपाई है।
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