यह युवा मित्र Raj K Mishra की एक सारगर्भित पोस्ट पर हल्की-फुल्की टिप्पणी है।
हेराक्लिटस परिवर्तन को ही साश्वत मानते हैं तथा पार्मिनिडिज स्थाइत्व को। दोनों का समन्वय ऐतिहासिक सत्य है। द्वंद्वात्मक भौतिवाद का एक नियम है कि क्रमिक, मात्रात्मक परिवर्तन अनवरत रूप से होता रहता है जो परिपक्व होकर गुणात्मक, क्रांतिकारी परिवर्तन का रूप धारण करता है। द्वंद्वात्मक भौतिकवाद वैज्ञानिक युग के फॉयरबेकियन भौतिकवादवाद को मशीनी तथा हेगेल की द्वंद्वात्मकता को आदर्शवादी कहकर खारिज करते हैं तथा उनका समन्वय करता है। फायरबाक का मानना है बस्तु ही सब कुछ है, हेगेल का मानना है विचार ही सार है तथा वस्तु उसकी छाया मात्र। भौतिक वस्तुओं में परिवर्तन निरंतर होता है लेकिन परिवर्तन का विचार का सापेक्ष स्थायित्व होता है। हेगेल की विचारों की प्राथमिकता सही नहीं हो सकती क्योंकि ऐतिहासिक रूप से वस्तु विचार के बिना भी अस्तित्व में रहे हैं और विचार की उत्पत्ति वस्तु से ही हुई है किंतु यथार्थ की संपूर्णता वस्तु की उससे निकले विचार के साथ मिलकर, मार्क्सवादी शब्दावली में उसके साथ द्वंद्वात्मक एकता स्थापित कर बनती है। इसे सेब गिरने की भौतिकता (वस्तु) और इससे निकले न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण नियम से बेहतर समझा जा सकता है। न्यूटन के नियमों से तो सेब गिरना नहीं शुरू हुए, सेबों के गिरने से न्यूटन का नियम निकला। लेकिन वस्तु (ऊर्ध्वाधर पतन) तथा विचार (न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत) की द्वंद्वात्मक एकता से ऊर्ध्वाधर पतन की परिघटना की संपूर्णता बनती है। मैंने बगावत की पाठशाला में (2 साल पहले) इसपर कई पाठ शामिल किया था, खोजना पड़ेगा।सिद्धांत अमूर्त ही नहीं होते, वे भी भौतिक शक्ति होते हैं।
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