शाहीन बाग में रविवार के लाखों के जनसैलाब के एक लिंक पर एक सज्जन ने कहाकि इतने दिन किसी हिंदू संगठन के धरने की वजह से रास्ता रुका होता तो कोहराम मच जाता, फिर उन्होंने कहा कि बच्चे भी सीएए के विरुद्ध नारे लगा रहे हैं, इनका पैसा कहां से आता है? उन पर 2 कमेंट:
यहां कोई हिंदू-मुस्लिम संगठन नहीं थे, जनता थी, लाखों लोग। कभी हिंदू-मुसलिम फिरकापरस्त नरेटिव से निकल कर इंसान की तरह सोचें तो बात बेहतर समझ पाएंगे। वैसे हिंदू तो कोई होता ही नहीं, कोई ब्राह्मण होता है कोई शूद्र जो विरोधाभास इस ग्रुप में ही कई बार साफ दिखता है।
बच्चे सुनकर सीखते हैं, जो सरकार के अंधभक्त हैं उन्हें अपनी अंधभक्ति पता है? जो हिंदू-मुसलमान का जहर फैलाते फिरते हैं उन्हें पता है क्या कि हिंदू-मुसलमान या बाभन-दलित होने में उनका कोई योगदान नहीं है बल्कि यह एक जीववैज्ञानिक दुर्घटना का परिणाम है। सोसल मीडिया पर इतनी ट्रोलगीरी कहां से फाइनेंस हो रही है? जब आवाम सड़क पर निकलता है तो वह अपनी यात्रा खुद फाइनेंस करता है। आंदोलनों के अनुभव से वंचित घिसी-पिटी जिंदगी जीने वालों को जनांदोलन का गतिविज्ञान नहीं समझ आ सकता। जहालत के शासन के विरुद्ध यह क्रांति हो रही है, अंधेयुग से निकलने की क्रांति, यह संचित आक्रोश की अभिव्यक्ति है।अंधभक्त अंध आस्था की मरीचिका में चमत्कार की आशा में जीता है, जिसका अपना पेट भर रहा है उसे दूसरों की भूख समझ नहीं आती। कमनिगाही में उसे अपने बच्चों के भविष्य पर छाया ग्रहण नहीं दिखता। सादर।
जब आवाम सड़क पर निकलता है तो वह अपनी यात्रा खुद फाइनेंस करता है। आंदोलनों के अनुभव से वंचित घिसी-पिटी जिंदगी जीने वालों को जनांदोलन का गतिविज्ञान नहीं समझ आ सकता। ...बहुत सही
ReplyDeleteशुक्रिया
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