Sunday, January 19, 2020

लल्ला पुराण 241( द्वंद्वात्मक भौतिकवाद)

Rajesh Kumar Singh मैं डार्विन के विकासक्रम (इवॅल्यूसन) के सिद्धांतको मानता हूं। मेरा सरोकार मनुष्य कैसे मनुष्य बना नहीं है, मेरा सरोकार दो पैरों पर चलने वाले मनुष्य बन चुके जीव से है जिसने हाथों को औजारबनाने की शुरुआत से अपने श्रम से अपनी आजीविका के उत्पादन (फल-फूल-कंदमूल के संग्रहण तथा शिकार से शुरू कर) से अपने को पशुकुल से अलग किया, ऐसा वह प्रजाति-विशिष्ट प्रवृत्ति चिंतनशक्ति के चलते कर सका। उसके बाद का इतिहास श्रम के औजारों के परिष्कार और जीवनस्तर में सुधार का इतिहास है। होने और सोचने में वस्तु और विचार सा द्वंद्वात्मक संबंध है। सोचने और होने के द्वंद्वात्मक संबंध में भी प्राथमिकता होने की है। सत्रहवीं सदी के फ्रांसीसी गणितज्ञ-दार्शनिक देकार्त (1590-1650) का कथन, 'मैं सोचता इसलिए मैं हूं' भी हेगेल की द्वंद्वात्मकता की तरह सर के बल खड़ा है। मैं हूं, इसलिए सोचता हूं, सोचता हूं इसलिए खास तरह का बनने का प्रयास करताहूं। इस प्रयास को कुंद करने के लिए सोचने के अधिकार पर हमले होते हैं। सोचने और होने की द्वंद्वात्मकता में होने की प्राथमिकता सोचने के महत्व को कम नहीं करती, उसी तरह जैसे वस्तु और विचार की द्वंद्वात्मकता में वस्तु की प्राथमिकता का मतलब विचार के महत्व को कमतर करना कतई नहीं है।

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