Wednesday, January 22, 2020

लल्ला पुराण 244 (तुष्टीकरण)

तुष्टीकरण के एक कमेंट पर:

सब राजनैतिक दल बहुसंख्यक तुष्टीकरण ही करते हैं। शासक वर्ग समाज के प्रमुख, आर्थिक अंतर्विरोध की धार कुंद करने के लिए कृतिम, गौड़ अंर्विरोधों को हवा देता है। देश की अर्थव्यवस्था दयनीय हालत में है, विकास का विनाश हो रहा है, बेरोजगारी चरम पर है, मंदी सुरसा की तरह मुंहल बाए खड़ी है, उत्पादन क्षेत्र में त्राहि मची है, धनपशुओं की लूट तथा सरकारी संपत्तियों की बिक्री जारी है, इन मुद्दों से ध्यान भटकाकर भाजपा अपने एकमात्र कार्यक्रमऔर रणनीति, चुनावी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पर ध्यान अटकाए रहना चाहती है। इसका मकसद किसी पीड़ित प्रताड़ित को मदद करना नहीं है, असम के एनसीआर में 11 लाख बंगाली हिंदुओं की अवैधता गलेकी फांस बन गयी जिसके लिए सीएए लाया गया जिससे हिंदू-मुस्लिम नरेटिव जारी रहे। विपक्षी दल राजनैतिक दिवालिए हो चुके हैं, उनके पास कोई दृजवाब नहीं है। मौजूदा देशव्यापी विरोध लोगों के संचितआक्रोश का परिणाम है। 1857-58 के बाद पहली बार दोनों प्रमुख धार्मिक समुदायों में ऐसी एकता दिख रही है जिसने बांटो-राज करो के मंसूबे पर पानी फेर दिया है। 1857-58 की एकता तोड़ने के लिए अंग्रेज शासकों ने बांटो-राज करो की नीति अपनाकर हिंदुस्तानियों को हिंदू-मुसलमान 'नस्लों के रूप में परिभाषित करना शुरू किया। मौजूदा एकता देसी शासक वर्गों की बांटो-राज करो की नीति का पर्दाफाश कर रही है। केंद्रीय नेतृत्व-विहीनता ऐसे आंदोलनों की ताकत और कमजोरी दोनों है। एक अनजाने से मुहल्ले का नाम शाहीनबाद शब्द, जातिवाचक संज्ञा से भावबाचक संज्ञा बन कर विचार के रूप में शहर शहर फैल रहा है, चुपचाप रहने वाली बेटियां रात रात जग आजादी के तराने गा रही हैं। नतीजे तो भविष्य के गर्भ में हैं, लेकिन आंदोलन का नारा 'हिंदू-मुस्लिम राजी तो क्या करेगा नाज़ी' एक सकारात्मक पहल है, प्रतीकात्मक ही सही।

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