एक ग्रुप में एक सज्जन ने कहा कि जैसे मैं हिंदू धर्म की कुरीतियों तथा विसंगतियों पर बोलता हूं, मुसलमान वामी या सेकुलर तीन तलाक जैसी कुरीतियों पर नहीं बोलता। उस पर दो कमेंट:
यही सांप्रदायिकता का जहर है कि आपको मुस्लिम अपने धर्म की कुरीतियों के खिलाफ बोलता नहीं दिखता। पाकिस्तान में एक हॉस्टल में एक तर्कवादी लड़के को लिंच कर दिया था, एक गवर्नर को मार दिया। एक ग्रुप है तर्कवादी दुनिया उसमें सारे मुसलमान सदस्य इस्लाम की कुरीतियों यहां तक कि कुरान और पैगंबर की बुराइयां करते हैं। मेरे जितने दोस्त हैं, ज्यादातर नास्तिक हैं और न नमाज पढ़ते हैं न रोजा रखते हैं। हर धार्मिक को अपना धर्म अच्छा तथा औरों का गंदा लगता है। इन पूर्वाग्रहों से निकलें तभी विवेकशील इंसान बन पाएंगे। मैं कब ब्राह्मण धर्म की बुराई करता हूं? इतना वक्त किसके पास है कि अर्म-धर्म पर बात करे? जिस तरह धर्मनिरपेक्षता के दुश्मन संघी हैं, उसी तरह मुसंघी भी। विदा इस लिए लेता हूं कि और भी काम करने होते हैं, कलम का मजदूर हूं।
बहुत से बोलते हैं। आपकी दुनिया बहुत छोटी है तमाम मुसलमान तीन तलाक़ समेत सभी कुरीतियों पर खुलकर लिखते बोलते हैं। उसके लिए कूप से निकल कर खुले दिमाग से सोचने की जरूरत होती है। सभी समुदायों में कठमुल्ले और तार्किक लोग होतै है।
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