Tuesday, January 21, 2020

लल्ला पुराण 242 (द्वंद्वात्मक भौतिकवाद)

भौतिक पदार्थ में ही सत्य की समग्रता की तलाश यांत्रिक भौतिकवाद है, विचारों में ही सत्य की समग्रता का प्रतिस्थापन तथा दृष्टिगोचर भौतिक विश्व की उत्पत्ति अदृश्य विचारों की दुनिया में तलाशने की द्वंद्वात्मकता आदर्शवाद है। प्रचीन यूनानी विचारक प्लैटो को इस धारा का प्रथम सुगठित दार्शनिक माना जा सकता है, हेगेल जिसके आधुनिक संस्करण हैं। द्वंद्वात्मक भौतिकवाद दोनों समग्रताओं को अपूर्ण प्रमाणित कर नकारता है और दोनों को मिलाकर सत्य की नई समग्रता का निर्माण करता है जो दोनों से भिन्न है लेकिन जिसमें दोनों के तत्व शामिल हैं। समग्रता न तो अकेले पदार्थ में होती है न ही उससे निकले विचार में बल्कि दोनों की द्वंद्वात्मक एकता में। मार्क्स के थेसेस ऑन फ्वॉयरबाक की तीसरी थेसिस में मार्क्स यांत्रिक भौतिकवाद (फॉयरबाक) से सहमति जाहिर करते हैं कि मनुष्य की चेतना उसकी भौतिक परिस्थितियों का परिणाम है तथा बदली चेतना बदली परिस्थितियों का। लेकिन न्यूटन के गति के नियम के अनुसार बिना वाह्य बल के प्रयोग के अपने आप कुछ नहीं बदलता। भौतिक परिस्थितियों को बदलने में प्रयुक्त वाह्यबल मनुष्य का चैतन्य प्रयास है। अतः बदलाव के सत्य की समग्रता भौतिक परिस्थितियों और मनुष्य की चेतना का संश्लेषण (द्वंद्वात्मक एकता) है या सत्य की समग्रता का निर्माण पदार्थ और विचार की द्वंद्वात्मक एकता से होता है।

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