Friday, January 24, 2020

ईश्वर विमर्श 89 (बुद्ध और रामायण)

मिथकीय इतिहासबोध के चलते अपने ही ग्रंथों के साक्ष्यों को नजरअंदाज कर लोग उन्हे और उनके कथानक को अतिप्रचीन प्रचारित कर महिमामण्डित करते हैं। ‘वाल्मिकी-रामायण’, ‘बुद्ध’ के बाद लिखी गयी थी, इसका प्रमाण स्वयं ‘रामायण’ ही है।

‘वाल्मिकी रामायण’ मे ऐसे कईं श्लोक हैं, जो तथागत बुद्ध और बौद्ध धर्म के खिलाफ लिखे गये है। वाल्मीकि रामायण के ये श्लोक, इस तथ्य की स्पष्ट पुष्टि करतें है, कि रामायण, गौतम बुद्ध और ‘बौद्ध धम्म’ के बाद लिखी गयी है।

ऐसे ही कुछ श्लोक ‘आयोध्या-कांड’ में है । यहां पर लेखक ने ‘बुद्ध’ और ‘बौद्ध-धम्म’ को नीचा दिखाने के फेर में ‘तथागत-बुद्ध’ को स्पष्ट ही श्लोकबद्ध (सम्बोधन) करते हुए, राम के मुँह से चोर, धर्मच्युत नास्तिक और कईं अपमानजनक शब्दों से संबोधित करवा दिया हैं।

यहाँ कुछ उदाहरण प्रस्तुत किये जा रहैं हैं , जिनकी पुष्टि आप ‘वाल्मिकी रामायण (गीता प्रेस गोरखपुर) से कर सकते हैं :-

उग्र तेज वाले नृपनंदन श्रीरामचंद्र, जावाली के नास्तिकता से भरे वचन सुनकर उनको सहन न कर सके और उनके वचनों की निंदा करते हुए उनसे फिर बोले :-

“निन्दाम्यहं कर्म पितुः कृतं , तद्धस्तवामगृह्वाद्विप मस्थबुद्धिम्।

बुद्धयाऽनयैवंविधया चरन्त , सुनास्तिकं धर्मपथादपेतम्।।”

– अयोध्याकाण्ड, सर्ग – 109. श्लोक : 33।।
[ हे जावाली! मैं अपने पिता (दशरथ) के इस कार्य की निन्दा करता हूँ कि उन्होने तुम्हारे जैसे वेदमार्ग से भ्रष्ट बुद्धि वाले धर्मच्युत नास्तिक को अपने यहाँ रखा। क्योंकि ‘बुद्ध’ जैसे नास्तिक मार्गी , जो दूसरों को उपदेश देते हुए घूमा-फिरा करते हैं , वे केवल घोर नास्तिक ही नहीं, प्रत्युत धर्ममार्ग से च्युत भी हैं ।]

“यथा हि चोरः स, तथा ही बुद्ध स्तथागतं।

नास्तिक मंत्र विद्धि तस्माद्धि यः शक्यतमः प्रजानाम्

स नास्तिकेनाभिमुखो बुद्धः स्यातम् ।।”

-(अयोध्याकांड, सर्ग -109, श्लोक: 34 / Page :1678 )

[जैसे चोर दंडनीय होता है, इसी प्रकार ‘तथागत बुद्ध’ और और उनके नास्तिक अनुयायी भी दंडनीय है । ‘तथागत'(बुद्ध) और ‘नास्तिक चार्वक’ को भी यहाँ इसी कोटि में समझना चाहिए। इसलिए राजा को चाहिए कि प्रजा की भलाई के लिए ऐसें मनुष्यों को वहीं दण्ड दें, जो चोर को दिया जाता है।
परन्तु जो इनको दण्ड देने में असमर्थ या वश के बाहर हो, उन ‘नास्तिकों’ से समझदार और विद्वान ब्राह्मण कभी वार्तालाप ना करे।]

इससे साफ है कि रामायण बुद्ध के बाद लिखी गयी ना कि बुद्ध सेहजारों साल पहले।

25.01.2019

1 comment:

  1. वाल्मीकि रामायण के अयोध्याकांड में केवल 82 सर्ग हैं।। और महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना संस्कृत के इकलौते अनुष्टुप छंद में लिखा है।। अनुष्टुप छंद में 32 पूर्ण अक्षर होते हैं।। अब आप बुद्ध वाला श्लोक पढियेगा अगर उसमे 32 मात्रा मिले तो बताईयेगा और 82 सर्ग में 109 सर्ग कहाँ से आया ये भी बताईयेगा।।

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