तीन तरह के आक्रमणकारी भारत आए। 1. शुद्ध लुटेरे -- गजनी, चंगेज खां और नादिर शाह जैसे। 2. बेहतर संसादनों की तलाश में आए और यहीं की माटी में बस-खप कर यहां की अर्थव्यवस्था तथा संस्कृति में योगदान किया-- जैसे मुगल जो तमाम नी फसलों, फलों तथा उद्योग धंधों के साथ आकर बसे। राज्य तलवार के बल पर स्थापित होते थे इसलिए जिसकी तलवारमें ज्यादा दम था वह शासक बना। 3. अंग्रेज खास किस्म के लुटेरे थे जो 200 साल तक यहीं टिक कर शासन करते हुए लूटते रहे। अंग्रेज लुटेरों की खासियत यह थी कि विजय और लूट के लिए उन्हें सैनिक और दलाल यहीं मिल गए। 1857 में जब किसानों और असंतुष्ट सैनिकों ने राष्ट्रीय मुक्ति का जंग छेड़ा (कार्ल मार्रक्स ने जिसे भारत की आजादी की लड़ाई कहा) और जंग कामयाबी के कगार पर पहुंच गई तब ग्वालियर के राजा सिंधिया, हैदराबाद के निजाम, पटियाला तथा राजपुताने के ज्यादातर रजवाड़ों की तरह भारतीय देशी शासकों का एक उल्लेखनीय हिस्सा आजादी के जंग के विरुद्ध अंग्रेज लुटेरों के साथ खड़ा हो गया। जनता के गद्दार इन शासकों को अपने आवाम की आजादी की बजाय विदेशी शासन की मातहती पसंद थी। इन रजवाड़ों ने गद्दारी न की होती तो मुल्क का इतिहास अलग होता। 1857 के राष्ट्रीय राजनैतिक विद्रोह से बौखलाए अंग्रेज शासकों ने बांटो और राज करो की नीति अपनाया तथा भारत वासियों को हिंदू-मुसलमान में बांट कर परिभाषित करना शुरू किया। जब उपनिवेश विरोधी आंदोलन भारत को सामासिक संस्कृति के एक राष्ट्र के रूप में परिभाषित कर रहा था तो अंग्रेजों को अपनी नीति के सहायक के रूप में हिंदू और मुस्लिम राष्ट्र को पैरोकार के रूप में हिंदू महा सभा तथा आरएसएस एवं मुस्लिम लीग और जमाते इस्लामी के लंबरदार मिल गए। इनकी मदद के बावजूद भी राष्ट्रीय आंदोलन के प्रवाह में अंग्रेजोंको भारत छोड़ना पड़ा लेकिन जाते-जाते मुल्क बांटकर अपने दलालों की मदद से मुल्क में स्थाई दरार डाल गए। देश के बंटवारे के फलस्वरूप, अंग्रेजों की बांटो राज करो नीति के चलते उनके प्यादे हिंदू-मुसलमान खेलकर सत्ता पर काबिज हो मुल्क लूट और लुटा रहे हैं। लंबा कमेंट हो गया। इसे लेख में तब्दील करने की कोशिस करूंगा।
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