बाबर आक्रमणकारी था जिसने राणा सांगा के निमंत्रण पर लोदी शासित दिल्ली सल्तनत पर हमला किया, वह लूटकर यहां की संपत्ति कहीं लेकर नहीं गया। धर्म हमेशा शासक वर्गों का हथियार रहा है। आरएसएस ने हमेशा स्वतंत्रता आंदोलन के विरुद्ध अंग्रेजों की प्रत्यक्ष-परोक्ष दलाली की है। गोलवल्कर बंच ऑफ थॉट में लिखते हैं कि स्वतंत्रता आंदोलन की दोनों धाराएं (हिंसक-अहिंसक) अंधकार के गर्त में ले जाने वाली हैं जब कि संघ का मकसद गौरव (अपरिभाषित) के शीर्ष पर ले जाना है। वि ऑर आवर नेसन डिफाइंड में लिखते हैं कि हिंदुओं को अपनी ऊर्जा अंग्रेजों से लड़ने में नहीं खर्च करना चाहिए बल्कि भविष्य में मुसलमानों और कम्युनिस्टों से लड़ने के लिए संरक्षित करना चाहिए। पाकिस्तान हिंदू राष्ट्र की ही उपप्रमेय है। मैं आरएसएस में रहा हूं, हजारों प्रचारक अखंड भारत का प्रचार नहीं फिरकापरस्ती के जहर का प्रसारकरते हैं। ये अखंड भारत कभी नहीं चाहेंगे क्योंकि मुसलमानों की आबादी 14% से 40% हो जाएगी तथा हिंदू-मुस्लिम नरेटिव से अपने एक मात्र औजार, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण से सत्ता हासिल करना मुश्किल हो जाएगा। राम जन्मभूमि का बदला लेना इनका मकसद नहीं था, इनका मक्सद बाबरी मस्जिद के विध्वंस से धर्मोंमाद के जरिए चुनावी ध्रुवीकरण था। सुप्रीम कोर्ट से मंदिर का रास्ता साफ हो जाने के बाद मंदिर का उंमाद शांत हो गया है, अब किसी का खून नहीं खौलरहा है, क्योंकि अब राममंदिर का चुनावी फायदा पूरा हो चुका है।
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