Friday, January 24, 2020

लल्ला पुराण 245 (धर्म)

प्राचीन काल में ज्यादातर सभ्यताएं हमारी ही तरह बहुदेववादी (पगान) धर्म की अनुयायी रही हैं। प्राचीन यूनान में हमारी ही तरह हर चीज के अलग-अलग देवी-देवता होते थे। चौथी सदी की शुरुआत में सम्राट कॉन्सेंटिन द्वारा ईशाइयत अपनाने के पहले रोम तथा यूरोप में ईशाियों को संदेह और अवमानना की निगाह से देखा जाता था तथा बात-बेबात प्रताड़ित किया जाता था। अरब सातवीं सदी में इस्लाम के प्रादुर्भाव के पहले बहुदेववादी समाज था। यह भूमिका अनायास हो गयी, आप बिल्कुल सही कह रहे हैं कि सभी धर्म या रेलिजन श्रेष्ठतावाद के रोग से ग्रस्त होते हैं। आस्था की वेदी पर विवेक की बलि देने के नाते सभी धर्म-रेलीजन अधोगामी होते हैं, वर्णाश्रम धर्म सर्वाधिक अधोगामी है क्योंकि बाकियों में समानता की सैद्धांतिक संभावना होती है (सैद्धांतिक ही) लेकिन इसमें तो समानता की सैद्धांतिक संभावना भी नहीं होती, लोग पैदा ही असमान होते हैं। अमानवीयकरण सभी धर्मों (रेलिजनों) का स्थाई भाव है।

No comments:

Post a Comment