दीपिका पादुकोण के जेएनयू के घायल बच्चों से हमदर्दी दिखाने जाने की घटना के बाद भक्त उसकी फिल्म छपाक के बारे में दुष्प्रचार करने लगे कि असल जिंदगी में लड़की पर एसिड फेंकने वाला मुसलमान है लेकिन फिल्म में हिंदू दिखाया गया है। इस पर मैंने हिंदुस्तान टाइम्स का एक लिंक शेयर किया कि खलनायक का नाम बशीर है, राजेश नहीं, वह तो एक नेक चरित्र है।
कुछ परोपकारी लोग होते हैं जो लिखे पर कमेंट करने की बजाय पूछते हैं, इस पर क्यों नहीं लिखा, या ये क्यों नहीं किया? एक सज्जन ने लिखा कि दीपिका जेएनयू जा सकती है, बीएचयू क्यों नहीं गयी। उस पर:
दीपिका बीएचयू के बच्चों लिए समय निकाल लेतीं तो कोईई बुरा नहीं था, यह तो आपको उससे आग्रह करना चाहिए, मैं तो उसका नाम जोएनयू गयी तो अभी सुना। वैसे बीचयू के बच्चे भी जेएनयू के बच्चों के समर्थन में आंदोलित हैं। एक बात समझ नहीं आती कोई कुछ लिखे या करे तो जो कुछ नहीं करते या लिखते वे उस काम या लेख पर कमेंट करने की बजाय य़े क्यों नहीं किया या ये क्यों नहीं लिखा? अरे भाई जो जो कर पाया किया या जो लिख पाया लिखा। जो आप सोचते हैं कि उस पर लिखा या किया जाना चाहिए, वह आप कीजिए या उस पर आप लिखिए। आपने बीएचयू के बच्चों के लिए क्या किया? क्या लिखा? मैं तो जबसे बीएचयू के बच्चे आंदोलित हो रहे हैं, उन पर कई लेख-कविताएं लिखा। कभी कभी चिरकुटई से ऊपर उठ जाना चाहिए।
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