इस्लाम समेत सभी धर्मों की प्रगतिशील ताकतों द्वारा धार्मिक कुरीतियों की आलोचना संबधी एक पोस्ट पर किसी ने पैगंबर के किसी अभियान के जिक्र से कहा कि संगठित मजहब में नहीं उसकी गलत व्याख्या में बुराई है, उसपर:
मैं तो नास्तिक हूं, जो खुदा की अवधारणा को मनुष्यों द्वारा निर्मित मानता है, ईश्वर ने मनुष्य को नहीं बनाया बल्कि मनुष्य ने अपनी ऐतिहासिक जरूरतों केमुताबिक ईश्वर की अवधारणा निर्मित किाया, इसीलिए उसका स्वरूप और चरित्र देश-काल के हिसाब से बदलता रहा है। पहले ईश्वर गरीब और असहाय की मदद करता था, अब उसकी जो खुद अपनी मदद कर सकता है। (सर्वाइवल ऑफ ज फिटेस्ट)। आपकी बात मान लेता हूं कि पैगंबर ने मक्का की जंग बिना खून बहाए जीत ली, इस कहानी की कोई वीडियो भेजने की जरूरत नहीं है। लेकिन जब खुदा ही नहीं तो उसके पैगंबर और अवतार कहां से आ गए? वह खुदा ही कैसा जिसे अपने संदेश फैलाने के लिए इंसानों की मदद की जरूरत हो? जिसके संदेश (मजहब) के लिए जंग की जरूरत हो तथा इंसानों को सजा और माफी देने की? नास्तिक, धर्मनिरपेक्ष और वामपंथी सभी धर्मावलंबियों को सबसे बड़े दुश्मन नजर आते हैं। जाति व्यवस्था पर आधारित किसी हिंदू परंपरा की आलोचना पर एक भक्त ने कहा कि मेरी तरह कोई मुसलमान 'वामी या सेकुलर' तीन तलाक जैसी इस्लाम की कुरीतियों की आलोचना नहीं करता, उस पर यह कमेंट है कि हर समुदाय में प्रगतिशील और पोंगापंथी होते हैं। हम नास्तिकों का मकसद ऐतिहासिक परिघटनाओं की तर्कवादी व्याख्या है, किसी की धार्मिक भावनाओं को आहत करना नहीं। सादर।
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