मुझ पर तो डॉक्टरों ने सिगरेट पीने की रोक लगा दी है, वैसे तो सिगरेट का असर फेफड़े पर पड़ता है, दिल से उसका क्या मतलब? लेकिन मेडिकल ज्ञान शून्य होने के कारण डॉ. जो कह देगा मानना पड़ेगा। डिब्बी खरीदने वालों को तो गिनती रहती है, कितनी पिया। हैंड-रोल्ड सिगरेट पीने वाले गिनते ही नहीं रखते कि दिन भर में कितनी सिगरेट पिया? मेरे हैंड रोल्ड सिगरेट पीने की कहानी इलाहाबाद से शुरू हुई। आलोक राय (अमृत राय के बेटे और प्रेमचंद के पोते) कैंब्रिज से पढ़कर आए थे इवि के अंग्रेजी विभाग में नए नए लेक्चरर थे (दिवि से 8-10 साल पहले रिटायर हुए)। हम लोग गरीबविद्यार्थी थे शेयर करके सिगरेट पीते थे। आलोक राय लक्ष्मी टाकीज कॉफी हाउस में कोने में बैठकर पाउच में से टोबैको निकालकर रोल कर सिगरेट जलाते। हम लोग सोचते थे यह बड़े लोगों का हाई-फाई मामला होगा। एकदिन सिविल लाइंस में लकी स्वीट के बाहर सिगरेट की दुकान पर कैप्स्टन का पाउच दिखा, दाम पूछने पर पता चला 8 या10 रुपए का था (अगले कई सालों तक यही दाम रहा) और रोलिंग पेपर का एक पैकेट (50 पेपर) 25-30 पैसे का। विल्स नेवी कट 1 रु.10 पैसे का पैकेट मिलता था। एक पाउच में 135-40 सिगरेट बनते थे। 10-15 सिगरेट टेढ़ा-मेढ़ा बना फिर ठीक बनने लगा। फिर तो पैसे की बचत के लिए हैंड-रोल्ड सिगरेट पीने लगा। तनखाह बढ़ गयी तो गोल्डन वर्जीनिया किस्म की मंहगी आयातित तंबाकू लेने लगा तब भी सिगरेट से सस्ती ही पड़ती थी, नक्शेबाजी ऊपर से। तलब अब भी होती है, लेकिन मन मार लेता हूं।
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