एक सज्जन ने एक पोस्ट पर कमेंट किया कि मार्क्स को भगवान मानने वाले खुद कन्फ्यूज हैं और दूसरों कोभी करते हैं। वे खुद 4-5 बार मार्क्स पढ़ने के बादकन्फ्यूज हो गए,और यह कि मनुष्य उच्चतर से निम्नतर की तरफ अग्रसरित है तथा सारी दुविधाओं का समाधान वेद-उपनिषद में है। उस पर:
मार्क्स को भगवान मानने वाले मार्क्स को समझते नहीं, मार्क्स नास्तिक थे और मानते थे कि सत्य वही जिसका हो प्रमाण, सत्यता का आधार कोई भगवान या मार्क्स नहीं हो सकते। धर्म की आलोचना को सभी आलोचनाओं का प्रस्थानविंदु मानते थे। आप कार्ल मार्क्स क्या पढ़कर कन्फ्यूज हो गए? कौन सा वेद या उपनिषद पढ़कर आपने कन्फ्यूजन दूर किया? वेद-उपनिषद में सारा ज्ञान-विज्ञान ढूंढ़ने वाले वेदों या उपनिषदों का नाम शायद सुने होते हैं। हमारा ही मिथिकल इतिहासबोध उच्चतम (सतयुग) से निम्नतम (कलियुग) में अधोगमन का है वरना प्रकृति के नियम के तहत मनुष्य निम्नतर से उच्चतर की तरफ अग्रसरित होता है, हर अगली पीढ़ी तेजतर होती है, तभी मानव इतिहास पाषाण युग से साइबर युग तक पहुंचा है। हमारा स्वर्णयुग (सतयुग) भी ऐसा कि उसमें इंसानों की खरीद-फरोख्त की खुली बाजार हो, जिसमें कोई सत्यवादी हरिश्चंद्र खुद के साथ अपनी बीबी-बेटे को गाय-बछड़े की बेच सकता था।
No comments:
Post a Comment