दीपिका पादुकोण के जेएनयू आंदोलन के समर्थन की बात पर इलाहाबाद विवि के हमारे एक बहुत सम्मानित सीनियर ने चुटकी लेने के अंदाज में कहा कि अब जेएनयू को दीपिका का सहारा लेना पड़ गया। उस पर:
प्रणाम सर। जेएनयू को अपने आंदोलन के लिए दीपिका का सहारा नहीं लेना पड़ा, उसने समर्थनल दिया। हमें आपके भी समर्थन की जरूरत है। (इलाहाबाद से बेसहारा हो निकलने के बाद मुझे जेएनयू ने सहारा दिया था। जो भी इलाबादी दिल्ली आता था, जेएनयू में ही रुकता था) दुनिया का हर विवेकशील इंसान जेएनयू और जामिया के बच्चों के साथ खड़ा है।कोच्चि से गौहाटी तक चंडीगढ़ से ऑक्सफोर्ड तक, इलाहाबाद से शिकागो तक, बीएचयू से से मेलबोर्न तक सभी कैंपसों में जेएनयू और जामिया के समर्थन में आजादी के तराने गूंज रहे हैं। शाहीन बाग में महिलाएं नकाब से बाहर निकल कर इंकिलाब जिंदाबाद के नारे लगा रही हैं, तिरंगा फहराते, अंबेडकरकी तस्वीर हाथ में लिए संविधान बचाने की कसमें खा रही हैं।
यह क्रांति का नया आयाम है। इस आंदोलन की खास बात यह है कि इसकी पहली कतार तथा नेतृत्व की भूमिका में लड़कियां और स्त्रियां हैं। जेएनयू छात्रसंघ की अध्यक्ष भी एक लड़की है। क्रांति बंदूक की नली से नहीं, जनचेतना के जनवादीकरण से होती है, बंदूक की नली की क्रांति खास परिस्थिति का खास आयाम है। फासीवाद का एक जवाब -- इंकिलाब जिंदाबाद।
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