Musafir Baitha बंधु, अनजाने में आप ब्राह्मणवाद को बल दे रहे हैं, जो ज्ञान को अपने ढंग से परिभाषित कर उस पर एकाधिकार से वर्चस्वशाली बना रहा। लोगों के अज्ञान का फायदा उठाते हुए समाज विभाजन के पाप की अपनी जिम्मेदारी एक कल्पित ब्रह्मा पर मढ़ दिया। सामाजिक चेतना का स्तर विकास के चरण के समानुपाती होता है और जैसा मार्क्स ने कहा है कि शासक वर्ग की विचार ही शासक विचार होते हैं। पूंजीवाद सिर्फ माल नहीं पैदा करता है, विचार का भी उत्पादन करता है। शासक विचार युग चेतना बन जाती है जो सामाजिक चेतना का निर्धारण करती है। किसी परिवर्तनकामी बुद्धिजीवी का कर्तव्य, मेरी राय में, सामाजिक चेतना के जनवादीकरण में अपना यथासंभव योगदान देना, लेकिन पहले जनवाद समझना पड़ेगा। आप जैसे लोग अपनी अपार सर्जक ऊर्जा वामपंथ में ब्राह्मणवाद ढूंढ़ने में जाया करके, और ब्राह्मणवाद के मूलमंत्र का भक्तिभाव से पालनकर व्यक्तित्व का निर्धारण उसके कामों और विचारों की बजाय जन्म के आधार पर करके कुत्सित ब्राह्मणवादी की भूमिका निभाकर जनवादी अभियान को भक्तों जितना ही क्षति पहुंचा रहे हैं। अस्मिता की राजनीति की एक सीमा होती है उसके बाद, यदि उसका जनवादीकरण न हुआ तो वह विकृत हो जाने-अनजाने; प्रत्यक्ष-परोक्ष प्रतिक्रांतिकारी किरदार अदा करता है. सादर.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment