कुछ लोग मेरी किसी भी पोस्ट पर जोयनयू-देश-के टुकड़े, नक्सल, वामपंथ करने लगते हैं ऐसे ही एक सज्जन के इसी तरह के कमेंट का जवाब:
मैंने तो नहीं कहा राकेश सिन्हा ने कुल का नाम डुबोया या मैंने आगे बढ़ाया। मैंने तो तथ्य बताया। पंजीरी खाकर रटा-रटाया भजन गाते-गाते दिमाग के इस्तेमाल की आदत छूट जाती है। कितनी बार साबित हो गया कि जेनयू के नारे प्रायोजित थे संघी घुसपैठियों ने लगाए थे, उसी तरह जैसे युवा वाहिनी का दीक्षित दंगा फैलाने के लिए गाय काटते पकड़ा गया। एबीवीपी के सौरभ शर्मा को वीडियो में पाकिस्तान जिंदाबाद लगाते हुए पहचाने जाने के बाद उस पर प्रशासन ने 10000 का जुर्माना लगाया है। इसके कई वीडियो वायरल है। गाय काटते हुए पकड़े गया दीक्षित हिंदू युवा वाहिनी का था उसके किसी दफ्तर पर गोरक्षक हत्यारों ने हमला बोला? जलाया किन्ही ब्राह्मणों या दीक्षितों के गांव? न पकड़ा गया होता वह तो कितने मुसलमान गांव जलते? कितने मासूमों की हत्या होती? नफरत की राजनीति के लिए कितनी महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार होता? आप द्वारा कही गई सभी बातें आपके अफवाहजन्य इतिहासबोध और ब्राह्मणीय श्रेष्ठतावादी पूर्वाग्रहों की उपज है। अपने से सवाल कीजिए कि क्या आप किसी बात पर तथ्यों के आधार पर सत्य बोलते हैं? मैं भी गधों को रगड़-रगड़ कर घोडा बनाने के चक्कर में पड़ा रहता हूं। अब यदि कुछ विवेक सम्मत ज्ञान देना हो या लेना हो तभी मेरी वाल या कमेंट पर कुछ कहें। गुजारिश है। मैं जब कहता हूं कि पढ़े-लिखे जाहिलों का अप्रतिशत अपने अपढ़ साथियों से अधिक है तो बहुत लोग नाराज हो जाते हैं। मेरे लिए पढ़े-लिखे जाहिलों की एक कोटि उन लोगों की है जो उच्च शिक्षा के बावजूद इतना नहीं जान पाते कि व्यक्तित्व का निर्माण सामाजीकरण से होता है, जन्म की जीववैज्ञानिक दुर्घटना के आधार पर नहीं, और कर्म-विचार के आधार पर व्यक्तित्व का मूल्यांकन की बजाय जन्म के आधार पर करते हुए जन्मजात प्रवृत्तियों से ऊपर नहीं उठ पाते। Viren N Tiwari.
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