पृथ्वी किसी की संपत्ति नहीं है, सारे मनुष्यों की साझी विरासत है। हमारे पूर्वज, 3 भाई 200-250 पहले बस्ती के बट्-टूपुर गांव से आए और आजमगढ़ जिले में एक गांव में डेरा जमा लिए। वहां 'उनकी जमीन' रही होगी, उसपर अब कौन बसा है, नहीं मालुम। हम उन्हें वहां से भगा सकते हैं क्या? हमारे ऋगवैदिक आर्य पूर्वज सप्तसैंधव (सिंध, पंजाब की 5 नदियां और सरस्वती) के क्षेत्र में रहते थे, जिसका प्रमाण ऋगवेद है, सरस्वती सूखने के बाद वे पूरब बढ़े, वहां के मूलनिवासियों (आज के आदिवासी और दलित) को विस्थापित करते हुए, क्या हमें मूलनिवासियों के वंशज भगा सकते हैं? एनआरसी और कुछ नहीं, देशद्रोही संघियों का चुनावी ध्रुवीकरण का शगूफा है। आसू आंदोलन इसी मुद्दे पर हुआ, आसू के नेता ध्रुवीकरण से आसाम में सत्ता में आए, वे उन्हें भगा पाए क्या? हर युग में बेहतर आजीविका की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह आते-जाते रहे हैं। यूरोपीय मूल के लोगों ने अमरीका पर कब्जा करना तो 500 साल पहले शुरू किया, वहां के मूलनिवासी दयनीय अल्पसंख्यक बन गए हैं, वे अगर अमरीका के गोरों और भूरों को भगाना शुरू कर सकते हैं क्या?
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment