Satya Prakash Rajput साथी,
नहीं होता कुदरत का कोई कानून
धूर्त शासक आचार संहिता बनाता है
चालाकी से उसे कुदरती कमाल बताता है
सच है कि मातृत्व स्त्री का धर्म है
बच्चा पालना पितृत्व का भी साझा कर्म है
जो स्त्री दुधमुहे बच्चे को छोड़
किसी धनपशु की चाकरी करती है
इसलिए नहीं कि मातृत्व को बेमानी मानती है
इसलिए कि अभिशप्त है बेचने को श्रम
दुधमुंहें की परवरिश को
यदि यह खिलाफ है कुदरती कानून के
जला डालो ऐसे कानून और ऐसी कुदरत
वर्गवादी सोच ही यथार्थ है वर्ग समाज की
समन्वय की संस्कृति इसका छलावा और पाखंड
अगर वर्गवर्स्चस्व या मर्दवाद है
कुदरत का नियम
जला डालेंगे हम ये नियम
और वर्गीय वर्चस्व के कानून
वर्गविहीन समाज बनाएंगे
मातृत्व को सम्मान दिलाएंगे
मानव-मुक्ति का तब जश्न मानाएंगे
नहीं मजबूरी होगी श्रमशक्ति बेचने की
न ही दुधमुंहे बच्चे को छोड़कर धन कमाने की
मां बच्चे को दूध पिलाएगी
हर बच्चा समाज की थाती होगा
समाज ही करेगा उसकी परवरिश
तब बनेगी समन्वय की सभ्यता
जब सब कोई एकसमान होगा
न छोटा-न-बड़ा; न पुरुष न स्त्री
हर कोई विरक्त श्रम से मुक्त
इक सर्जक इंसान होगा।
(ईमि: 06.07.2018)
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