आसाम की संपदा -- तेल; चाय; जल; जंगल -- के लुटेरे कौन हैं? देशी-विदेशी कॉरपोरेट; भारत सरकार, जिसे आसामियों पर अविश्वास है और उनके तेल को लंबी पाइप लाइन से तेल उगाह कर बरौनी में परिष्कृत करती है; और लकड़ी तथा जंगली जानवरों की खाल और हड्डियों के तस्कर जिसमें बांग्ला-भाषी मुसलमान नहीं हैं। जातीय हिंसा के शिकार कौन हैं? जो आसाम के जनजीवन की गाड़ी को इंधन-पानी देते हैं -- बांगलाभाषी और झारखंडी मजदूर। मैं गौहाटी और शिलांग की की यात्राओं में जितने बांग्ला-भाषी मुसलमानों से मिला उनमें से ज्यादातर रिक्शा चलाते हैं, प्लंबर और मेकैनिक आदि दिहाड़ी कारीगरी करते हैं या चाय-पान की छोटी-मोटी दुकानदारी तथा उनके घरों की महिलाएं मध्यवर्गीय घरों में चूल्हा बर्तन। लोगों का गुस्सा आसाम की संपदा के असली लुटेरों से हटाने के लिए कॉरपोरेटी दलाल रह रह कर बांग्लादेशी मुद्दा उठाते रहते हैं और लोगों की धार्मिक-जातीय भावनाओं के शोषण से नफरत के माध्यम से ध्रुवीकरण के चूल्हे पर सियासी रोटी सेंकते हैं। फिलहाल नफरत की फौरी संघी साजिश का मकसद राफेल महा घोटाले; अपने आका धनपशुओं, भगोड़े माल्याओं, ललित-नीरव मोदियों, चोकसियों की लूट; विकास के गुब्बारे के फुस्स होने; देश की आर्थिक बदहाली; बेरोजगारी; सरकार की बेशर्म कॉरपोरेटी दलाली; गोरक्षकों और बजरंगी लंपटों के देशद्रोही अपराधों से लोगों का ध्यान हटाकर मुस्लिमों को खलनायक साबित करके सांप्रदायिक फासीवादी ध्रुवीकरण है। यदि मुल्क बचाना है तो इन संघी देशद्रोही आतंकवादियों की साजिश को नाकाम करना है। 4 सालों में देश की संपदा अपने आका धनपशुओं को समर्पित कर देश की अर्थव्यवस्था को दशकों पीछे ढकेल चुके हैं। हर देशभक्त का कर्तव्य है इनके नापाक मंसूबों कावपर्दाफास करना। ये अगर अपनी देशद्रोही मंसूबे में कामयाब हुए तो आनेवाली पीढ़ियां हमें कभी नहीं माफ करेंगी। बाकी आप की मर्जी।
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