असल में चार्वाक पद्धति के बारे में हम जानते कम हैं और इस पर सामग्री भी कम है। चारवाक ब्राह्मणवादी कर्मकांडी पौराणिक ज्ञान के विपरीत वैज्ञानिक भौतिकवादी द4शनधारा के प्रतिनिधि है। वे अतीत की गौरवगाथा या भविष्य की सेवर्णिमता के नहीं वर्तमान यथार्थ के चिंतक थे। ब्राह्णवादी साहित्य में उनका वैसा ही मजाक उड़ाया गया है जैसा आज के 'देशभक्त' मुसलमानों और वामपंथियों का उड़ाते हैं। चार्वाक-लोकायत दर्शन को पौराणिक साहित्य में उनके शैतानीकरण को डिकॉन्स्ट्रक करके चित्रित किया।
जो समाज जितना संकीर्ण और अमानवीय आंतरिक अंतर्विरोधों का शिकार हो वह उतनी ही जल्दी छिन्न-भिन्न होता है, लेकिन पुनर्नििणाण बेहतर ही होता है। (कुल मिलाकर) बेहतरी के संघर्ष के लिए ही जीवन है। मैं अपनी बेटियों और छात्राओं को कहता हूं कि तुमलोग भाग्यशाली हो कि 1-2 पीढ़ी बाद पैदा हुए। मुझे 1982 में अपनी बहन के बाहर जाकर पढ़ने के अधिकार के लिए पूरे खानदान से घमासान करना पड़ा था। आज किसी बाप की औकात नहीं है कि कहे बेटा-बेटी में फर्क करता है। करे भले ही। दुनिया द्वंद्वात्मक है, यही द्वंद्व तो इतिहास का इंजन है। हम सब सारे पूर्वाग्रह-दुराग्रहों से ऊपर उठकर यह सोच लें कि हम सब मानवता की सेवा में सहयात्री हैं, दुनिया सुंदर होगी। कभी तो होगी, खुशफहमी ही सही जीने का तर्क तो है।
No comments:
Post a Comment