साथी चे ने कहा था कि वे मुक्तिदाता नहीं है, मुक्तिदाता जनता है। मार्क्सवाद की विशिष्टता सर्वहारा की मुक्ति नहीं है बल्कि सर्वहारा की मुक्ति सर्वहारा द्वारा। सर्वहारा की बजरंगी भीड़ अपनी मुक्ति की लड़ाई कैसे लड़ेगी जो अपनी गुलामी की जंजीरों से मुहब्बत करती है? जो भी श्रम के साधनों के लिए पराधीन है, सब सर्वहारा है, प्रोफेसर तथा चपरासी सब। मार्क्स लिखते हैं वह सर्वहारा होने के नाते अपने-आप में वर्ग हैं लेकिन अपने लिए तभी वर्ग बनेंगे जब वे वर्गचेतना के आधार पर साझे वर्ग हितों के लिए संगठित होंगे, यह समझ जनसंघर्षों से निकलेगी। फिलहाल लोगों में जनचेतना का प्रसार यानि सामाजिक चेतना का जनवादीकरण फौरी जरूरत है, जिसकी आवश्यक शर्त है शासक वर्ग द्वारा थोपी गयी सामाजिक चेतना के मिथ्याबोध से मुक्ति।
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