Friday, July 27, 2018

फुटनोट 193 (शाखामृग)

मैंने अपने शाखामृग जीवन पर एक पोस्ट लिखा, उस पर कमेंट्स पर कुछ कमेंट:

Rakesh Tiwari बच्चा था, फंस गया था लेकिन जल्दी ही फांस तोड़कर निकल गया। मैं 1972 में 17 साल की उम्र में एबीवीपी का बड़ा नेता था। अटलबिहारी के साथ मंच शेयर कर चुका था। बाकी एबीवीपी नेताओं की तरह अटल शैली में बकवास करता था, सोचता था ज्ञान बघार रहा हूं।

Santosh Kumar Pathak मैंने तो 1970 में आरयसयस और 1973 में एबीवीपी छोड़ा, न छोड़ता को उसी गंदी खंदक में आज भी पड़ा होता। ये बच्चों को ही पकड़ते हैं, उनका ब्रेनवाश आसान होता है, फौजी ड्रिल नीम पर तितलौकिया का काम करता है। इन मूर्खों की बेहूदी बातें परम सत्य लगती थीं। एक बार एक प्रचारक, वीरेश्वर जी (वीरेश्वर द्विवेदी, विहिप का मौजूदा नेसनल सेक्रेटरी) बौद्धिक ले रहा था, बताया कि औरंगजेब ने एक कत्ले-आम के बाद 40 मन जनेऊ जलाया था यानि लगभग 2 क्विंटल और अगर एक जनेऊ का वजन 5 ग्राम मानें तो 4 लाख जनेऊधारी कत्ल किए गए और अगर आबादी का 20 फीसदी भी जनेऊ पहनता हो तो उसने एक ही बार 20 लाख कत्ल किया। वीरेश्वर जी झल्ला गए कि बौद्धिक में सवाल नहीं किया जाता। तब से शाखा जाना बंद कर दिया। वैसे औरंगजेब कट्टर धार्मिक था वह ब्राह्मणों और मठों को जमीन और धन अनुदान देता था। विज्ञान का विद्यार्थी था, विज्ञान वाले समाजिक समझ के मामले में (प्रायः) गधे होते हैं, जानता नहीं था एबीवीपी आरयसयस का अंग है, तो उसका नेता बन गया। 18 की उम्र तक समझ में आया, तब राष्ट्रीय अधिवेशन में पर्चा बांटकर इस्तीफा दिया।

Rakesh Shukla मार्क्सवाद नहीं सिमटा है, वह कालजयी विचार है। मार्क्स विकास के चरण पर जोर देते हैं और विकास के हर चरण के अनुरूप सामाजिक चेतना होती है। मार्क्सवाद सिमटा होता तो सारे प्रतिक्रियावादियों के सिर पर मार्क्सवाद का बात-बेबात भूत न सवार होता। मानव मुक्ति तक मार्क्सवाद प्रासंगिक रहेगा और क्रांति-प्रतिक्रांतियों के अंतिम चरण, मानव मुक्ति तक दुनिया के सारे प्रतिक्रियावादियों का सिरदर्द बना रहेगा। मेरे इंसान बनने में जनेऊ यों बाधक था कि वह जन्म की जीववैज्ञानिक दुर्घटना की प्रवृत्तियों का प्रतीक था। जबरदस्ती 3 ग्राम धागे का बोझ क्यों ढोता रहूं?



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