रामायण इतिहास नहीं मिथक है, लेकिन मिथक के भी मायने होते हैं। इन मिथकों के भी अनुसार रावण का नैतिक चरित्र राम जैसे मर्दवादी, छल-कपट की मूर्ति राम की तुलना में काफी ऊंचा है। बौद्धक्रांति के विरुद्ध ब्राह्मणवादी प्रतिक्रांति की दार्शनिक पुष्टि में लिखे गए ये मिथक वर्णाश्रमी संस्कृति की पुनर्स्थापना के ग्रंथ है। इन ग्रंथों का आदर्श मर्दवादी वर्णव्यवस्था का समाज है जिसमें स्त्री वेटलिफ्टिंग प्रतियोगिता में जीती जाती है और किसी-न-किसी बहाने गर्भवती करके लात मार कर घर से निकाल दी जाती है। यह एक ऐसी संस्कृति है जिसमें जैसा मनुस्मृति में लिखा गया है स्त्री की आजादी खतरनाक एवं अपराध है। दूसरी संस्कृति की लड़की जिसमें स्त्रियां भी अपनी सेक्सुअल्टी की स्वतंत्र अभिव्यक्त कर सकती हैं, जब प्रणय निवेदन करती है तो उसके नाक-कान काट लिए जाते हैं। कथा का नायक राम, जिसे भगवान कहा जाता है, छल-कपट से एक ऐसे व्यक्ति की हत्या कर देता है, जिसने उसका कुछ नहीं बिगाड़ा जैसे अमरीका चौधरी बन किसी भा देश को बमबारी से खंडहर बना रहा है। एक प्रतापी राजा जिसके राज्य को सोने की लंका कहा जाता है, यानि प्रजा सुखी है, अपनी बहन के नाक-कान कटवाने वाले की पत्नी का अपनी जादुई क्षमता से अपहृत कर लेता है। यह भी गलत है मुझसे झगड़ा है तो मेरी बीबी से बदला क्यों? अग्निपरीक्षा लेने के पहले सीता से कहते हैं कि उन्होंने उस जैसी औरत के लिए रावण को छल-कपट से नहीं हराया बल्कि रघुकुल की नाक के लिए. रावण ने सीता का अपहरण कर उससे जोर जबरदस्ती नहीं करता, फाइवस्टार गेस्ट हाउस में मान मनौव्वल ही करता है। रामराज्य में एक शूद्र ज्ञान हासिल करने की जुर्रत करता है तो उसकी हत्या कर दी जाती है, जैसे आज दलित दूल्हे की घोड़े पर चढ़ने पर हत्या कर दी जाती है। विस्तार में जाने की गुंजाइश नहीं है, इन चंद मिशालों से साबित होता है कि रावण का नैतिक चरित्र राम और उनके बलात्कारी भक्तों से ऊंचा है, उसकी वर्णित विद्वता को छोड़कर।
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