Thursday, July 12, 2018

मार्क्सवाद 142 (जयभीम-लालसलाम)

समाजवाद ही एकमात्र विकल्प है।रोहित बेमुला की शहादत से निकला जेयनयू आंदोलन का जयभीम-लालसलाम नारा समाजिक न्याय और आर्थिक न्याय के संघर्षों की एकता का प्रतीकात्मक नारा है। इस नारे को सैद्धांतिक और व्यवहारिक रूप देना है। मैं भी इस पर काम कर रहा हूं। बौद्ध राजनैतिक सिद्धांत पर एक अध्याय लिखने में फंसा हूं। यूरोप मे नवजागरण और प्रबोधन आंदोलनों ने जन्मजात विभाजन खत्म कर दिया था, भारत में कबीर द्वारा शुरी नवजागरण अपनी तार्किक परिणति तक नहीं पहुंच सका। अब सामाजिक न्याय (जातिवाद का विनाश) और आर्थिक न्याय के संघर्ष अलग अलग नहीं साथ लड़ने की जरूरत है। पंजाब के दलितों का जमीन आंदोलन मिशाल है। मैंने उपरोक्त लिंक के दो लेखों और तीसरी दुनिया में सितंबर 2016 'समाजवाद की समस्याएं' तथा समयांतर जून 2016 'कम्युनिस्ट और जाति का सवाल' में इस पर बात की है। ब्लॉग से लिंक शेयर कर रहा हूं। Rajesh Tyagi ट्रॉट्सीपंथियों के पास कोई कार्यक्रम नहीं है तथा वे मार्क्स की वीभत्स व्याख्या के जरिए आंदोलनों के संदर्भ में विध्वंसक भूमिका निभाते रहे हैं। इनका आंदोलनों में योगदान विध्वंसक ही रहा है। एक आंदोलन बतकाइए जिसे विश्व आंदोलन का इंतजार करते मार्क्सवादविरोधी ट्रॉट्सीपंथियों ने चलाया हो। आप विश्वकआ्रांति का इंतजार कीजिए और आंदोलनकारी ताकतों का विरोध। आप ही जैसे विश्वक्रांति का इंतजार करने वालों के लिए मार्क्स ने व्यंग्य किया था कि शुक्र खुदा का मैं मार्क्सवादी नहीं हूं और एंगेल्स ने 1891 में कहा था कि मार्क्सवादी वह नहीं जो मार्क्स या उनके लेखों से उद्धरण पेश करे बल्कि वह जो किसी खास परिस्थिति में वही करे जो मार्क्स करते।

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