Friday, September 19, 2014

बहुत ही लंबा है यादों का कारवां

बहुत ही लंबा है यादों का कारवां
बुनते जो खट्टी-मिट्ठी बातों का सिसिला
छद्म नाम में  मगर है बड़ा लोचा
जब भी है हक़ीकात बयानी की सोचा
मेरे संसमरणों के हैं ऐसे ऐसे उदाहरण
बड़े बड़े ज्ञानी-मानी दिखते हैं चारण
वैसे भी अपन तो काम है इतिहास बनाने का
करेंगी भावी पीढियां काम बाकलम करने का
मिली गर कभी फुर्सत लिखेंगे आपबीती भी 
जरूरत है अभी लिखने की जंग-ए-आजादी के नारों की.
[इमि/२०.०९.२०१४]

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