एक पुलिस अधिकारी मित्र ने पोस्ट डाला कि अच्छे काम करने पर भी बदनाम होते हैं और मौत के शाये में जीते है, उस पर मेरा कमेन्ट:
करते रहोगे गर काम नेक
करते हुए इस्तेमाल दिमाग का
मिलेंगी दुवाएं अनेक
होगा भला गर आवाम का
माना नहीं हो वर्दीधारी गुंड़ा
यह भी माना की वर्दीधारी शेर हो
समझ नहीं पाता
कि कौन ज्यादा खतरनाक है
मानवता के लिए, शेर या गुंडा?
नहीं समझ पाता हूँ और भी एक बात
होता क्यों नहीं वर्दीधारी भी साधारण इंसान
मिले जिसे तालीम न महज हुक्म तामील करने की
बल्कि विवेक का भी इस्तेमाल करने की
और सुनने की आवाज़ अंतरात्मा की?
उसी तरह जैसे समझ नहीं पाता
कि क्यों नहीं समझता शिक्षक
शिक्षक होने की अहमियत?
मौत के खौफ में नहीं जी जा सकती सार्थक ज़िंदगी
मौत के खौफ में धीरे धीरे मरता है इंसान
मौत माना कि है अंतिम सत्य मगर अनिश्चित है
ज़िंदगी सुन्दर सजीव और सुनिश्चित है
जीना है वाकई गर एक मानिंद जिन्दगी
डालनी पड़ेगी आदत बेखौफ़ जीने की
सादर
(इमि/१४.०९.२०१४)
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