Heramb Chaturvedi मित्र, विकल्पहीनता मुर्दा कौमों की निशानी है. ज़िंदा कौमें कभी विकल्पहीन नहीं होतीं, यह कुज्ञान के रास्ते अज्ञान के ज्ञान में संक्रमण का दौर है. लेकिन मुझे इतिहास की अंततः अग्रगामिता अौर युगचेतना को ललकारने काबिल जनचेतना की अवश्यंभाव्यता तथा अगली पीढ़्यों की क्रांतिकारी संभावनाअों पर पूरा यक़ीन है. 1970 के दशक के उत्तरार्ध तक पिछली शताब्दी का दौर जनचेतना के जनोन्मुखता के चढ़ाव का दौर था. उसके बाद उतार का दौर शुरू ह्अा. इसका रुख बदलना ही होगा. Sumant Bhattacharya साथी, अापका सवाल नहीं समझ याअाया.पहली बात तो बौद्धिक नेतृत्व से अापका क्या मतलब है?
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