Wednesday, September 10, 2014

लल्ला पुराण १७२ क

Sumant Bhattacharya मैं जानता नहीं  कि प्रकाश सिंह कौन है? लेकिन इतिहास का टॉपर होने से इतिहास के ज्ञान की कोइ गारंटी नहीं है. उसी तरह जैसे कोचिंग के नोट रट कर  तमाम मिडीआकर पीसीयस/आईयस बन जाते हैं और दहेज़ से शुरू कर ज़िंदगी भर देश लूटने  में मशगूल रहते हैं जाहिल, इतना भी नहीं जानते की पूंजीवाद में सिर्फ पूंजीपति संचय कर सकता है बाकी संचय की खुशफहमी में रहते हैं.  कब इलाहाबाद देश के इतिहास का ढांचा रच रहा था? एक स्वनामधन्य इतिहासकार था जीआर शर्मा विश्वविद्यालय मे जातिवाद की जहालत फैलाता था और शिक्षकों की जातीय लामबंदी में एक जातीय गिरोह का नेता था. और कौन कौन इतिहासकार हुए हैं इलाहाबाद में? सुना है वीसी पाण्डेय नामक एक अच्छे अध्यापक थे लेकिन बड़े इतिहासकार नहीं.

मैं प्रकाश सिंह को नाम और पद के अलावा और नहीं जनता. उनके विवादित बयान से उनकी कठमुल्लावादी साम्प्रदायिक सोच का पता अवश्य चलता है. जरूरी नहीं हैं की महान शिक्षकों के सभी छात्र भी महान हों. धर्मनिरपेक्ष  संविधान की सपथ खाने वाला, अति महत्वपूर्ण पदों पर रह चुका जो अधिकारी अन्य अधिकारिओं की कर्तव्यपरायणता का आकलन जन्म के संयोग के आधार पर करे, उसके इतिहासबोध पर संदेह होना लाजिमी है. वैसे किसी की परीक्षा के अंक उसके चरित्र या ज्ञान का प्रामाणिक परिचय नहीं देते.  

No comments:

Post a Comment