यह हुई न बुलंद इन्किलाबी जज़्बातों की बात
मुबारक हो फैसला देने का मुक़द्दर को मात
सच में मोहताज़ नहीं ज़िंदगी हाथ की लकीरों की
कौन रोकेगा उड़ान अज्म-ए-यकीं के फकीरों की
बढ़ती रही इसी रफ़्तार से गर जनवादी जनचेतना
ठिठक जायेगी निजाम-ए-ज़र की फरेबी युगचेतना
आयेगा तब जगे ज़मीर का युगकारी जनसैलाब
इंसानियत के सारे दुख-दर्द हो जायेंगे बे-आब
होंगे आज़ाद दलित-आदिवासी और मजदूर-किसान
बचेगा नहीं निजाम-ए-ज़र का कोई नाम-ओ-निशान
इंसानों में होगा भाईचारा और समता का संवाद
खारिज हो जाएगा श्रेणीबद्धता कोई भी अपवाद
होगा स्त्री-पुरुषों में जनतांत्रिक मेल-मिलाप
नहीं करेगा कोई मौत-ए-मर्दवाद पर विलाप
धुल जायेंगे धरती से शोषण-दमन के पाप
कहते हैं आयेगा तब दुनिया में समाजवाद
(इमि/२५.०९.२०१४)
No comments:
Post a Comment