लोकसेवा आयोग से कुछ नहीं होना है. भ्रष्टाचार इस कदर व्याप्त है कि मैं उ.प्र. लोकसेवा आयोग के उच्छ शिक्षा आयोग के सदस्य रहे किसी (सवर्ण) का घर/महल देखकर आश्चर्य चकित हुआ तो किसी ने लेक्चरार की नियुक्ति का लाखों का भाव बताया. मैंने नवभारत टाइम्स में "प्रतिभा" पर कई(३) लेख लिखे थे जिसके चलते अपने बहुसंख्य(सवर्ण) विद्यार्थियों समेत "पढ़े-लिखे" लोगों में काफी अलोकप्रिय हो गया था. लेकिन सच और ;लोकप्रियता में चुनाव हो तो सच चुनना चाहिए, लोकप्रियता काफी अस्थिर होती है. बाद में एक लेख में लिखा था की मंडल कमीसन ने और कुछ किया या नहीं, भ्रष्टाचार का लोक्तान्त्रेकर्ण कर दिया जिससे भविष्य के ध्रुवीकरण में सकारात्मक मदद मिलेगी.
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