शाक्यमुनि चंडाल ज़िंदगी भर ब्राह्मणवाद के विरुद्ध अभियान के लिए ब्राह्मणों की गालियाँ खाता रहा और जन्म की दुर्घना की अस्मिता ही आपके लिए अंतिम अस्म्निता है इसलिए आपकी ब्राह्मण की गाली भी खा लेता हूँ. मैं हिन्दी साहित्य का विद्यार्थी नहीं रहा. ३० साल पहले राष्ट्रीय आन्दोलान में वामपंथी रुझान के शोध के दौरान उपरोक्त पुस्तक( भारत ममें मार्क्सवाद और अंगरेजी राज) पढ़ा. मुझ जैसे "नीच ब्राह्मण" (क्योंकि नाम में मिश्र लिखा है तो आप उससे ऊपर उठाने की अनुमति देंगे नहीं शाक्यमुनि जी) को वह पुस्तक काफी ज्ञानवर्धक लगी थी. मुक्तिबोध की राम्विलासीय आंकलन को तोड़ने वाली समीक्षा भी एक "ठाकुर" नामवर जी ने किया. आपकी प्रतिक्रया समझ सकता हूँ. आग्रह बस इतना ही है की लेखक के नाम से नहीं उसकी कृति से उसका आंकलन करें.
शाक्यमुनि चंडाल आप जैसे विद्वानों से मेरे जैसा नीच बहस करने में अक्षम है. भाषा की तमीज खून से नहीं सोच से बनती है. संख्या और बल में अधिक होते हुए भी क्यों शूद्र मुट्ठी भर सवर्णों का अत्याचार सहते रहे? ग्राम्सी ने इसे वर्चस्व के सिद्धांत से समझाया है. आप से शायद पूछ कर पैदा किया गया होगा लेकिन मैं कहाँ पैदा हो गया इसमें मेरा कोइ हाथ नहीं है. वैसे नीचता पर किसी का कापी राईट नहीं है, नीच दलित भी हो सकते हैं. रामविलास और रामराज(उदितराज) जैसे अम्बेडकरी रामों के बारे में आपका क्या ख्याल है? जिन प्रिविलेजेज की बात आप करे रहे हैं उन्हें उस उम्र में (17 वर्ष) छोड़ दिया था बाप से आर्थिक सम्बन्ध विच्छेद करके जब आप बाप के मनीआर्दर के बिना जीवन की कल्पना नहीं कर सकते रहे होंगे. जातिवादी नासूर को ज़िंदा रखने में आप जैसे कार्पोरेटी दलाली में कम्युनिस्टों को गलियाँ देने वाले विद्वान दलितों का उतना ही योगदान है जितना कि नीच ब्राह्मणों का. यह अंतिम कमेन्ट है आप जैसे विद्वान से जो मुक्तिबोध और रामविलास को एक साँस में गालियाँ देते हों, मुझ अज्ञानी के बहस की औकात नहीं है. क्षमा कीजिये और कम्युनिस्ट विरोध में कारपोरेट की दलाले जारी रखिये. समतामूलक समाज के निर्माण में ब्राह्मणवादी तो बाधक हैं ही आप जैसे नवब्राह्मणवादी कारपोरेट दलाली में उनके परोक्ष सहयोगी है. सादर.
Vikrant Singhक्या मजबूरी थी दलितों को ज़ुल्म सहने की? आप ग्रामसी का वर्चस्व का सिद्धांत पढे. आप किसके कर्म का फल भोग रहे हैं? मस्त रहो लेने में अतीत का बदला और शासकवर्ग आपके वर्त्तमान को विकृत करके भविष्य पर कब्ज़े की जुगाड़ करे.
Vikrant Singh मित्र, आप लगता है मेरे विचारों से अनभिज्ञ हैं, इस "गौरवशाली" इतिहास और "गैरवशाली" परम्पराओं के गौरव की हकीकत बताता रहता हूँ. ब्राह्मणवाद ने समाज के बहुसंख्यक हिस्से को शिक्षा और शासन के अधिकार से वंचित रख कर समाज की अभूतपूर्व सर्जन शक्ति के उचित सदुपयोग को रोक कर सदियों तक समाज के बौद्धिक क्षितिज को जड़ बनाए रखा. अल्पसंख्यक शासक वर्ग वैचारिक वर्चस्व के चलते विभक्त और बिखरे बहुसंख्यक शासित पर शासन करता है. पिछले ३०-३५ सालों में दलित प्रज्ञा और दावेदारी के तेज होते अभियान उस वर्चस्व के दरक कर टूटने के कगार पर पहुंचाने के प्रमुख कारकों में हैं. मौजूदा १% कार्पोरेटी शासक वर्ग वैचारिक वर्चस्व के चलते ही ९९% पर शासन कर रहा है. इस भूमंडलीय वर्चस्व के खिलाफ भूमंडलीय प्रतिरोध की आवश्यकता है. यह वर्चस्व जनचेतना के जनवादीकरण से ही टूट सकता है.
शाक्यमुनि चंडाल आप जैसे विद्वानों से मेरे जैसा नीच बहस करने में अक्षम है. भाषा की तमीज खून से नहीं सोच से बनती है. संख्या और बल में अधिक होते हुए भी क्यों शूद्र मुट्ठी भर सवर्णों का अत्याचार सहते रहे? ग्राम्सी ने इसे वर्चस्व के सिद्धांत से समझाया है. आप से शायद पूछ कर पैदा किया गया होगा लेकिन मैं कहाँ पैदा हो गया इसमें मेरा कोइ हाथ नहीं है. वैसे नीचता पर किसी का कापी राईट नहीं है, नीच दलित भी हो सकते हैं. रामविलास और रामराज(उदितराज) जैसे अम्बेडकरी रामों के बारे में आपका क्या ख्याल है? जिन प्रिविलेजेज की बात आप करे रहे हैं उन्हें उस उम्र में (17 वर्ष) छोड़ दिया था बाप से आर्थिक सम्बन्ध विच्छेद करके जब आप बाप के मनीआर्दर के बिना जीवन की कल्पना नहीं कर सकते रहे होंगे. जातिवादी नासूर को ज़िंदा रखने में आप जैसे कार्पोरेटी दलाली में कम्युनिस्टों को गलियाँ देने वाले विद्वान दलितों का उतना ही योगदान है जितना कि नीच ब्राह्मणों का. यह अंतिम कमेन्ट है आप जैसे विद्वान से जो मुक्तिबोध और रामविलास को एक साँस में गालियाँ देते हों, मुझ अज्ञानी के बहस की औकात नहीं है. क्षमा कीजिये और कम्युनिस्ट विरोध में कारपोरेट की दलाले जारी रखिये. समतामूलक समाज के निर्माण में ब्राह्मणवादी तो बाधक हैं ही आप जैसे नवब्राह्मणवादी कारपोरेट दलाली में उनके परोक्ष सहयोगी है. सादर.
Vikrant Singhक्या मजबूरी थी दलितों को ज़ुल्म सहने की? आप ग्रामसी का वर्चस्व का सिद्धांत पढे. आप किसके कर्म का फल भोग रहे हैं? मस्त रहो लेने में अतीत का बदला और शासकवर्ग आपके वर्त्तमान को विकृत करके भविष्य पर कब्ज़े की जुगाड़ करे.
Vikrant Singh मित्र, आप लगता है मेरे विचारों से अनभिज्ञ हैं, इस "गौरवशाली" इतिहास और "गैरवशाली" परम्पराओं के गौरव की हकीकत बताता रहता हूँ. ब्राह्मणवाद ने समाज के बहुसंख्यक हिस्से को शिक्षा और शासन के अधिकार से वंचित रख कर समाज की अभूतपूर्व सर्जन शक्ति के उचित सदुपयोग को रोक कर सदियों तक समाज के बौद्धिक क्षितिज को जड़ बनाए रखा. अल्पसंख्यक शासक वर्ग वैचारिक वर्चस्व के चलते विभक्त और बिखरे बहुसंख्यक शासित पर शासन करता है. पिछले ३०-३५ सालों में दलित प्रज्ञा और दावेदारी के तेज होते अभियान उस वर्चस्व के दरक कर टूटने के कगार पर पहुंचाने के प्रमुख कारकों में हैं. मौजूदा १% कार्पोरेटी शासक वर्ग वैचारिक वर्चस्व के चलते ही ९९% पर शासन कर रहा है. इस भूमंडलीय वर्चस्व के खिलाफ भूमंडलीय प्रतिरोध की आवश्यकता है. यह वर्चस्व जनचेतना के जनवादीकरण से ही टूट सकता है.
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