Wednesday, September 17, 2014

क्षणिकाएं 30 (५११-२०)

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511
अच्छे  दिu

अभी तो ये अंगड़ाई है
आगे गहरी खाई है
अच्छे दिन में केवल अच्छी बाते
नहीं चलेंगी जॉकी-कार्टूनी खुराफातें
करत हों चाहे चोरी या दलाली में मुंह काला
आखिर आवाम ने बनाया है इन्हें वज़ीर-ए-आला
हैं गर सचमुच के अच्छे दिन के अरमान
करनी ही होगी आज़ादी कुर्बान
सोच समझ कर ज़ुबान खोलो
जब भी बोलो जयभारत-जयमोदी बोलो
चाह्ते हैं गर रखना लब आज़ाद
आइये मिलकर बोलें इंक़िलाब ज़िंदाबाद.
(ईमिः15 अगस्त 2014)
512
बुजुर्गीयत की जवानी
युवा उमंगों की रूमानी अठखेलिओं में,
बुड्ढ़े भी लेते हैं रस बन दर्शक और श्रोता
मगर आती नहीं कभी यह बात मन में
काश मैं भी आज तुमसा जवान होता
होती है जवानी लबालब सर्जक ऊर्जा से
बुजुर्गीयत की जवानी का है अलग मजा
रस्क है अपने चाँद-ओ- सफ़ेद दाढ़ी से
रह नहीं सकती थी जो काली सदा
चाहत है बस एक ही इस अदना ज़िंदगी में
मिले न कभी किसी को बुढापे की सज़ा
[इमि/१५ अगस्त २०१४]
513
जब भी करता हूँ पड़ताल कुछ इंसानो की हैवानियत की
दिल का ज़ख्म लहू बन उतर आता है आंखों में
ज़ख़्म के आंशुओं से धुले हमीदा के चेहरे पर
शुक्र के भी भाव थे अपने ज़ालिमो के लिये
कर दिया सब कुछ खाक पर जान बक्श दी जो
याद आयी 2002 में ज़िंदगी की भीख मांगती
गुजरात की परिभाषा बन गयी इरफान की तस्वीर
जब भी करता हूँ  पड़ताल फिरकापरस्त हैवानियत की
याद आती है गोरख की वह कविता
करती है जो बात
बड़े दंगों से मतदान  की अच्छी फसल की
(ईमि/21.08.2014)
514
तन्हा शामें अौर एक छलकता हुअा जाम
याद-ओ-ख़याल करते हमप्यालों का काम
सोचते हैं कुफ्र बाख़याल-ए-अंज़ाम
करना है हर शाख के उल्लू का काम तमाम
मिटाना ही है धरती से ज़र का निज़ाम.
(हाहा ये तो शायरी सी हो गयी)
(ईमिः24.8.2014)
515
होगी ही एक-न-एक दिन हर एक शाख के एक-एक उल्लू की शिनाख़्त
किया जायेगा बर्बादी-ए-गुलिस्ताँ के एक-एक हिसाब की दरियाफ्त
(ईमिः24.08.2014)
516
चिंतनमुक्त मुक्तचिंतक
होते हैं जो मुक्त चिंतन से कहलाते हैं मुक्त चिंतक
करते हैं जो दावा विचारधारा से मुक्ति का होते हैं बिन पेंदे के लोटे
तोते हैं शासक विचारों के, देते हैं दर्जा वस्तुनिष्ठ सच्चाई का              
 अनभिज्ञ ज्ञान-प्रक्रिया की निरंतरता से चिल्लाते हैं विचारधारा का अंत
है इनका शोषण में नगण्य सहभाग पालते हैं वहम शासक का
डरते हैं परिवर्तन के गतिविज्ञान से अलापते हैं इतिहास का अंत
करते हैं मुनादी समाजवाद की असफलता की, त्रस्त हैं मगर मार्क्स के भूत से
जब भी होती है सचमुच की आज़ादी बात अभुआने लगते हैं मार्क्स्वाद मार्क्स्वाद.
इस धरा के चिंतन-मुक्त मुक्तचिंतकों को प्रणाम, शत-शत प्रणाम कोटिक प्रणाम.
(ईमिः25.08.2014)
517
भगवा vkSj तिरंगा बनते रहते हैं अदल-बदलके एक दूजे के काल
दोनों ही हैं लेकिन साम्राज्यवाद की कोख से जन्में पूंजी के जुड़वा लाल
जब तक लाल लाल नहीं लहरायेगा. ऐसा ही अच्छा दिन अाेगा.
(ईमिः26.08.2014)
518
क्या चलन है विलोमवाद का
सदाचार को लोग गुनाह कहते हैं
ज्यादातर लोग सिर के बल पैदा होते हैं
जो पैदा हुvk सीधा उसे विलोम कहते हैं.
(ईमिः28.08.2014)
519
मोदी-राजनाथ प्रकरण प्रसार
नगपुरिया अंतःकलह का सार
मोदी ने किया कूटनैतिक प्रहार
ठाकुर साहब हो गये लाचार
एक तीर से दो शिकार
दुश्मन घायल अौर दावा-ए-सदाचार
(ईमिः28.08.2014)
520
बचता नहीं कुछ जब पुराने में शुरू होता है नया अफ़साना 
बचा है बहुत कुछ इस जमाने में जनने को एक नया ज़माना 
मत हो  रुख्सत ऐ दिल इस जमाने से होकर मायूस-ओ-हताश  
बनाने को इसे और भी खूबसूरत करते रहना है सतत प्रयास  

(इमि/२९.०८.२०१४)

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