यह नई रवायत की एक अपील है
वर्चस्व से मुक्ति की दलील है
माफी की तो है पुरानी परंपरा
बुद्ध-ओ-कबीर से है इतिहास भरा
पिछली सदी में की मंटो ने पहल
किया खुदा को बडप्पन से बेदखल
("खुदा कभी माफ़ नहीं करता/खुदा से बड़ा है स-आदत हुसैन मंटो")
मैं तो मंटो का एक अदना सा मुरीद हूँ
सज़ा-से-सुधार के उसूल के विपरीत हूँ
सभ्यता का यही आचार
कथनी-करनी में बड़ी दरार
मेल नहीं होता सार और सन्देश में
मिलते हैं लोग बहुरूपिये के भेष में
माना, सभ्यता के गुणों से महरूम हूँ
शब्द-ओ-कर्म की एका मकदूम हूँ
इसीलिये कहता हूँ बात साफ़ साफ़
चाहें तो कर दें सभ्य लोग माफ़
(इमि/२१.०९.२०१४)
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