तानाशाह 2
वह निकलता नहीं बाहर
हथियार बंद बंद मानव मशीनों के सुरक्षा कवच से
वह डरता है इस बात से कि मशीनें सोचने न लगें
अौर बदल जाय बंदूक की नली का रुख़
डरता है ज्ञान की शक्ति से
जला देता है लाइब्रेरी
वह डरता है इतिहास से
विकृत करता है उसे गल्प-पुराणों के महिमा मंडन से
वंचित करता है नई पीढ़ियों को उनके इतिहास से
लेकिन हर अगली पीढ़ी तेजतर होती है
तोड़ देती है तानाशाह की कुचेष्टा का मकड़जाल
इन विघ्नों के बावजूद नया इतिहास रचती है
तानाशाह का मर्शिया लिखती है
डरता है तानाशाह नई पीढ़ियों से
निर्बल बनाता है उन्हें कुशिक्षा अौर कुज्ञान से
लेकिन हर अगली पीढ़ी तेजतर होती है
अागे ही निकलती है
तोड़कर कुज्ञान अौर कुशिक्षा के सारे ब्यूह
मटियामेट हो जाता है तानाशाह
जागता है जब अौर जागता ही है अावाम का ज़मीर
(ईमिः30.08.2014)
शुक्रिया, गाफिल साहब
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