Friday, June 4, 2021

लल्ला पुराण 384 (जेहाद)

 Raj K Mishra हर कम्यूनल प्रोपेगेंडिस्ट की तरह सेक्युलरिज्म को जेहाद का कवर फायर (वह जो भी होता हो) मानना, प्रचारित करना आपकी समस्या है। मैं तो तालबानी और बजरंगी दोनों तरह के जेहाद को इंसानियत का दुश्मन मानता हूं और इस देश में फासीवाद का खतरा तालिबानी जेहाद से नहीं, बजरंगी जेहाद से है। कोई सवर्ण हिंदू जब अपने स्व के परमार्थबोध को तिलांजलि देकर स्वार्थबोध के वशीभूत होता है तो उसे कम्यूनलिज्म समाज का उद्धारक और सेकुलरिज्म विनाशक ही लगता है। लेकिन वास्तविक अर्थों में सुखी वही रहता है जो स्वार्थबोध पर परमार्थबोध को तरजीह देता है। मैं भी यदि स्वार्थबोध के वशीभूत होता तो तमाम अन्य मिश्राओं-शुक्लाओं की ही तरह ब्राह्मणवादी और हिंदुत्ववादी ही होता। और इस ग्रुप में भी गाली खाने की बजाय आप सबकी वाहवाही का आनंद लेता। लेकिन मैं अपने छात्रों को सिखाता आया हूं कि जब भी चुनाव सही होने और लोकप्रयता में हो तो सही होना चुनो, लोकप्रियता या अलोकप्रियता अल्पजीवी होती है। जब भी चुनाव सही होने या कठिनाई का सामना करने में हो तो सही होना चुनो, कठिनाइयां आसान हो जाएंगी या उनसे फर्क नहीं पड़ेगा। (Whenever there is choice between being correct and popularity, choose to be correct, popularity or unpopularity are short-lived. When ever there is choice between being correct or facing difficulty, choose to be correct, difficulties would ease out or would not matter.) And a teacher must teach by example, not by preaching. ( एक शिक्षक को मिशाल से पढ़ाना चाहिए, प्रवचन से नहीं।) मैं न तो एक सवर्ण के स्व के स्वार्थबोध में बजरंगी जेहाद का पक्षधर हूं, न ही तालिबानी जेहाद का पक्षधर हूं क्योंकि अन्याय का जवाब जवाबी अन्याय नहीं होता, बल्कि न्याय होता है। हिंदुत्व सांप्रदायिकता समाधान इस्लामी सांप्रदायिकता नहीं, बल्कि धर्मनिरपेक्षता है। सही कह रहे हैं मैं सबकुछ नहीं जानता, कोई भी सबकुछ नहीं जानता। लेकिन जो जानता हूं बेबात उसका या जेो नहीं जानता उसका भजन गाने का कोई तुक नहीं है क्योंकि मैं किसी भी प्रकार का अंधभक्त नहीं हूं। मैं बेबात वाम वाम भजन गाने वालों को टोकता रहता हूं, इसलिए खुद बेबात भजन गाने का काम नहीं कर सकता।


नाबालिग से शादी आज भी अमानवीय थी और कम उम्र आयशा से उस समय भी गलत ही रही होगी।


Raj K Mishra अंधभक्तों के बेबात वाम वाम अभुआने की तरह सेकुलर आयशा के दर्द के बारे में बेबात क्यों अभुआता रहे। अब आपने पूछा तो बता रहा हूं। ऊपर आयशा की बात लिखने के पहले ही इंटर दब गया और फिर संपादन के पहले चाय बनाने चला गया। वैसे कम उम्र में आयशा का पैगंबर बन चुके मुहम्मद से विवाह के विषय में कुछ कहने का नैतिक अधिकार मेरे पास नहीं है क्योंकि मेरा खुद बाल विवाह हुआ था, मैं 17 साल से कम का था और मेरी पत्नी 15 की। जीवन में एकमात्र कन्यादान मैंने 15 साल की उम्र में अपने से लगभग 5 साल छोटी रिश्ते की भतीजी का किया था। भतीजी के विवाह का मैंने विरोध नहीं किया, क्योंकि उस सांस्कृतिक माहौल में बिना चैतन्य प्रयास के बिना समाजीकरण से बनी सोचने की आदत से निर्मित चेतना का स्वरूप और स्तर ऐसा कि वह विवाह नॉर्मल लगा, जिसमें मैंने बहुत उत्साह से भाग लिया। अपनेने विवाह में बालविवाह की अवैधानिकता से तो नहीं, लेकिन अवांछनीयता से परिचित था और विद्रोह भी किया लेकिन चेतना के उस स्तर पर उसे तार्किक परिणति तक नहीं ले जा सका। विद्रोह और उसकी असफलता की कहानी लंबी है। फिर कभी। लेकिन अब तो यह 1300-1400 पुरानी बाद हो गयी, लेकिन मुहम्मद तो पैगंबर बन चुके थे उन्हें तो नजीर पेश करना था तो यह विवाह निश्चित ही अनुचित था। बर्नी पढ़ाने के लिए इस्लामी राजनैतिक सिद्धांत पर थोड़ा अध्ययन किया था, कभी लिखूंगा।

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