कवि, लेखक, पत्रकार श्री Suresh Salil कल 80 साल के हो जाएंगे, सोचा था कल उनके जन्मदिन की बधाई की पोस्ट शेयर करूंगा, लेकिन मित्र Rajesh Joshi आज ही युवकधारा से पत्रकारिता की शुरुआत के सिलसिले में सलिल जी को याद करते अपने रोचक संस्मरण के साथ उनके 80वें जन्म दिन पर बधाई की पोस्ट शेयर किया। राजोश की पोस्ट पर निम्न कमेंट लिखा गया जिसे यहां शेयर कर रहा हूं। सलिल जी पर अलग पोस्ट कल डालूंगा।
यह तो युवकधारा के दिनों कीही तस्वीरहै। मैं सलिल जी का जन्मदिन 19 जून जानता था और आज सलिल जी को कल इनकी 80वीं वर्षगांठ की बधाई की पोस्ट डालने की सोच रहा था। मैंने भी युवकधारा से ही पत्रकारिता शुरू किया था। तारिक अनवर की कोठी के पिछवाड़े के सर्वेंट्स क्वार्टर्स में स्थित युवकधारा के उसी दफ्तर से। 1985 में डीपीएस से निकाले जाने के बाद तय कर लिया कि अब जब तक भूखे मरने की नौबत न आए तो रोजी-रोटी के लिए गणित का इस्तेमाल नहीं करूंगा। मंडी हाउस की एक दिन की अड्डेबाजी में पंकज भाई (दिवंगत पंकज सिंह) ने पूछा कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर लिख सकता हूं क्या? न कहने की अपनी आदत नहीं थी। श्रीराम सेंटर के बाहर बाबूलाल की दुकान से चाय पीने के बाद ऑटो से युवकधारा के दफ्तर पहुंचे। वहां सलिल जी के साथ अमिताभ, सुमन (सीपी झा) तथा राजेश वर्मा (युवकधारा से निकलकर सुमन और राजेश यूनीवार्ता ज्वाइन कर लिए और अमिताभ दिनमान) वहां उपसंपादक थे। अंतर्राष्ट्रीय विषयों पर 'विश्व परिक्रमा' कॉलम लिखने का मौखिक अनुबंध हुआ। तब तक लिखने का अनुभव सीमित था। अपने लेखन की गुणवत्ता पर अविश्वास इतना था कि 1983-84 में जनसत्ता में 'खोज खबर-खास खबर' पेज पर शिक्षा व्यवस्था पर पहला लेख छद्म नाम से लिखा। छपने के बाद लोगों की तारीफ से अपने लेखन की गुणवत्ता पर यकीन हुआ। जेएनयू से निकाले जाने से फेलोशिप बंद हो गयी थी, डीपीएस से निकाले जाने पर वेतन। गणित से धनार्जन के आसान रास्ते पर न चलने का फैसला कर लिया था। ऐसे में 300 रुपए मासिक (150 रु. प्रति लेख) की आश्वस्ति पर्याप्त थी। लिंक में प्रद्योत लाल (दिवंगत) ने सुधीरपंत से मिलवाया और फिर लिंक में लगभग हर हफ्ते तथा किसी अंक में दो लेख लिखने लगा। लिंक से भी प्रति लेख 150 रुपया मिलता था। युवकधाराके लेख के लिए कभी कभी जेएनयू की लाइब्रेरी में बैठता था लेकिन प्रायः उसके दफ्तर में ही। सलिल जी टॉपिक का चयन कर रिफरेंस मैटेरियल दे देते थे और बाहर धूप में बैठकर लिखता था। छपने के बाद अंक लेने जाता तो अमिताभ और राजेश कहते कि सबसे पहले यह अपना लेख पढ़ेगा, जो सही था। छपने के बाद अपना लेख पढ़ने की बाल सुलभ उत्सुकता होती थी। राजेश, अमिताभ और सुमन के वहां निकलने के बाद, मेरा लिखना भी बंद हो गया। कुछ लेख अभी भी मेरे पास कहीं होंगे। 2-3 टाइप कराकर किसी फाइल में सेव किया है। खैर बात सलिल जी की करनी थी और अपनी करने लगा। सलिल जी ने मुझे लिखना सिखाया। शब्द गिनने का तरीका बताया। सलिल जी की कविताएं अद्भुत थी। सलिल जी के माध्यम से बहुत से अंतर्राष्ट्रीय कवियों की कविताओं से परिचय हुआ। अदम गोंडवी और सलभ श्रीराम सिंह से पहली बार इन्हीं के साथ मुलाकात हुई थी। सलिल जी मंडी हाउस की साहित्यिक अड्डेबाजी के स्थाई सदस्य थे। सलिलजी, पंकज सिंह, पंकज विष्ट, असगर वजाहत, आनंद स्वरूप वर्मा, कभी कभी ब्रजमोमोहन और सलभ श्रीराम सिंह आदि की संगति बहुत ज्ञानवर्धक होती थी। बाकी सलिल जी को 80वीं वर्षगांठ की बधाई की अलग पोस्ट डालूंगा। उनकी सक्रिय और स्वस्थ दार्घायु की शुभकामनाओं के साथ यह कमेंट खत्म करता हूं।
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