पीयूष मिश्र दृष्टांत देकर बताइए वह उतना ही खतरनाक होता है जितना कम्यूनल। लेकिन सांप्रदायिक अंधभक्तों ने कम्यूनल एजेंडा को शातिराना ढंग से आगे बढ़ाने के लिए बात-बेबात सेकुलरिज्म की निंदा का भजन गाने का ट्रेंड शुरू किया है। वैसे भी फासीवाद का खतरा सदैव बहुसंख्यखक सांप्रदायिकता से होता है अल्पसंख्यक सांप्रदायिकता उसके एजेंट के रूप में पूरक सहायक की भूमिका अदा करती है।
Shalini Mishra सेकुलर के बारे में यह ज्ञान कहां से मिला? मानवीय़ता सेलेक्टिव नहीं होती अपनी पूर्णता में होती है। कोई भी कोई भी काम किसी मकसद से करता है, सेलेक्टिव मानवीयता में मेरा क्या मकसद हो सकता है? मैंने तो पूरी कीमत चुकाकर अभी तक का जीवन गलत को गलत और सच को सच बोलने की सनक में बिता दिया। सांप्रदायिक विद्वेष का जहर फैलाकर समाज को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के आधार पर बांटने वाले सांप्रदायिक नरपिशाचों के जाल में जो नहीं फंसते उन्हें सेकुलर पर हमला करके तोड़ने की साजिश शुरू किया है। आप जैसे सीधे-शरीफ लोगों के दिमाग में बैठा दिया गया है कि सेकुलरिज्म ने देश का बंटाधार कर दिया है। आपने सोचा नहीं कि सेकुलरिज्म क्या है? कौन सेकुलर है? उसने क्या बंटाधार किया है? लेकिन अनजाने में ही आप जैसे लोग वह रटा भजन गाना शुरू कर देते हैं और अनचाहे ही समाज को सांप्रदायिक विद्वेष से प्रदूषित कर देश के टुकड़ेृ-टुकड़े अभियान का हिस्सा बन जाते हैं? ईमानदारी से बताइए कि सेकुलरिज्म से आप क्या समझती हैं, किन सेकुलरों को जानती हैं जिनमें रत्ती भर भी गलत को गलत बोलने की बात नहीं है और जिनकी मानवीयता सेलेक्टिव होती है? आपको यह भी सोचना पड़ेगा कि मावीयता और सेलेक्टिव मानवीयता से आप क्या समझती हैं? एक सुपर सीनियर और शिक्षक होने के नाते चाहता हूं कि कुछ भी राय बनाने के पहले उसमें शामिल अवधारणाओं पर सवाल करें। किसी भी ज्ञान की कुंजी है सवाल-दर-सवाल तथा कूपमंडूकता का रास्ता है अनुशरण। सवाल की शुरुआत अपने mindset से शुरू करनी पड़ेगी क्योंकि समाजीकरण के दौरान एक खास तरीके से सोचने की हमारी आदत पड़ जाती है, सोचने के तरीके की आदत पर सवाल करना पड़ेगा। बेटी को बेटा कह कर क्यों साबाशी दी जाती है बेटा को बेटी कह कर क्यों नहीं? ज्ञान की प्रक्रिया का जितना महत्वपूर्ण पहलू सीखना (learning) है उतना ही समाजीकरण के दौरान सोच का हिस्सा बनचुके अनचाहे मूल्यों को भूलना (unlearning)है। शुभाशीष एवं ळुभ कामनाएं।
पीयूष मिश्र अल्प संख्यक सांप्रदायिकता की प्रतिक्रिया के रूप में बहुसंख्यक सांप्रदायिकता का बचाव का कुतर्क बहुत सोची-समझी साजिश है, आप जैसे शरीफ लोग अनजाने में ही उस साजिश में शरीक हो जाते हैं। हमेशा मंसूबा देखा जाता है, अल्पसंख्यक सांप्रदायिकता का पक्ष लेने में मेरा क्या मकसद हो सकता है? सांप्रदायिक ध्रुवीकरण से किसे फायदा होता है? आरएसएस गिरोह के पास सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के अलावा क्या देशहित का आर्थिक-सामाजिक कार्यक्रम है? फासीवाद का खतरा हमेशा बहुसंख्यक सांप्रदायिकता से होता है तथा बहुसंख्यक समुदाय पर अल्पसंख्यक के खतरेका हव्वा आजमाई फासीवादी चाल है। जर्मनी में हिटलर ने यहूदियों के खिलाफ वैसा ही माहौल बनाया था जैसा संघी गिरोह यहां बना रहा है। सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के जाल में न फंसे हिंदुों पर फर्जी सेकुलर और अल्पसंख्यक तुष्टीकरण का आरोप लगाकर बदनाम कर ट्रोल करो। कौन सेकुलर है जो मुल्ले की हैवानियत की निंदा नहीं कर रहा है? या वह लड़की हिंदू की जगह मुसमान होती तो वह बलात्कार न करता? सोचिए और राय बनाने के पहले खुद से और खुद पर सवाल कीजिए अन्यथा अनजाने में ही देश को सांप्रदायिक फासीवाद के दमनचक्र में फंसाने की साजिश के मुहरे बन जाएंगे। स्व के परमार्थबोध को स्व के स्वार्थबोध पर तरजीह दीजिए और समाज को सांप्रदायिक प्रदूषण से बचाने में योगदान दीजिए।
इस तरह की पोस्ट्स शातिरानामढंग से फासीवादी सांप्रदायिक अपराधों की पक्षधरता है और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के जाल में फंसने से बचे लोगों को बदनाम करने की यह सोची समझी साजिश है। यदि वह जानबूझकर समाज में सांप्रदायिक विद्वेष फैलाकर देश तोड़ने और तबाह करने की सकाजिश में शामिल नहीं है तो किसी विवेकशील व्यक्ति को मालुम हो जाना चाहिए कि मेरे जैसे किसी धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति का किसी एक धर्म, खासकर बहुसंख्यक धर्म को लक्ष्य बनाने में क्या मकसद हो सकता है जिसके नामपर सरकार समर्थित सांप्रदायिक फासीवादी तत्व अपराधिक रूप से आक्रामक हों। बहुसंख्यक पर अल्पसंख्यक के खतरे का हव्वा खड़ा करना पुरानी फासीवादी चाल है, जैसे हिटलर के अंधभक्तों ने जर्मनी में किया था और जैसा कि इस पोस्ट के लेखक जैसे छद्म भेषधारी सांप्रदायिक तत्व कर रहे हैं।
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