Sunday, June 27, 2021

बेतरतीब 106 (इलाहाबाद)

 सही कह रहे हे हैं हिंदू कॉलेज के छूट चुके मेरे आवास के पीछे का, लगभग 200 साल पुराना यह विशालकाय बरगद का पेड़ इलाहाबाद विवि के लोगो में दिखने वाले बरगद सा ही है। हिंदी विभाग के पीछे कुंए के चबूतरे को छाया देने वाला है भी ऐसा ही विशालकाय बरगद का पेड़ (या शायद पाकड़ का)। हमने उसके नीचे चबूतरे पर दोस्तों के साथ बहुत अड्डेबाजी की है, अब 49-45 साल पहले किसके किसके साथ क्या-क्या बातें करते थे, सब भूल गया है, कुछ नाम छोड़कर सब भूल गए हैं। उसी चबूतरे से छात्रों की बहुत सी सभाओं में शिरकत की है। 1974 की एक ऐतिहासिक सभा का वर्णन कभी करूंगा। हेमवंतीनंदन बहुगुणा उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बन कर आए थे, हम लोग पीडी टंडन पार्क में प्रदर्शन करके काला झंडा दिखाने वाले थे। उस समय कत्ल के इल्जाम में बंद, बाहुबलियों में सबसे बड़े 'भैया' हरिनारायण सिंह पेरोल पर छूट कर आए थे। छात्रसंघ के तत्कालीन अध्यक्ष, एबीवीपी के ब्रजेश कुमार समेत कई प्रमुख छात्र नेताओं के भाषण हो चुके थे। तभी अनुग्रह नारायण सिंह (इलाहाहाद से कई बार विधायक) आदि लोग किसी बहाने ब्रजेश, विवि के बयोवृद्ध छात्रनेता जगदीश दीक्षित (जिनके बारे में फिर कभी, उनके रस्टीकेसन को निरस्त करने के आंदोलनों -- जगदीश दीक्षित नहीं, चुनाव नहीं -- के चलते नहीं हुए थे। छात्रसंघ के 1971-72 के पदाधिकारियों का कार्यकाल [अध्यक्ष, अरुण कुमार सिंह 'मुन्ना' (कांग्रेस), महामंत्री ब्रजेश कुमार (एबीवीपी)] 1972-73 में भी जारी था), समाजवादी नेता ब्रहमानंद ओझा आदि को हिंदी विभाग के पीछे लेजाकर बंदूक की नोक पर अपहृत कर लिया, कुछ देर उन्हें जीएन झा में रखा गया, फिर बहुगुणा जी की मीटिंग खत्म होने तक उन्हें यमुना में नौकाविहार कराया गया। अफवाह फैल गयी कि अध्यक्ष भाग गया, लेकिन शीघ्र ही सबको सच्चाई पता चल गयी, लेकिन तब तक सभा तितर-वितर हो चुकी थी। हम कुछ लोग बहुगुणा की सभा में जेब में काला झंडा लेकर छिटक कर शामिल हो गए। पुलिस वाले भी सादी वर्दी में लाठियों के साथ शामिल थे। लाठी खाकर सभा से लौटकर हॉलैंड हॉल के परिसर में परमानंद मिश्र ( आपातकाल के बाद में छात्रसंघ का महामंत्री) के साथ भैया लोगों से घेरे जाने की कहानी फिर कभी। एबीवीपी के नेता के रूप में वह मेरे जीवन का अंतिम चरण था। अगले दिन बहुत बड़ा जुलूस निकला, लोग बताते हैं कि 1942 के बाद वह सबसे बड़ा जुलूस था। जुलूस सर्किट हाउस जा रहा था, रास्ते में मोटर वाहनों को आग के हवाले किया गया, सिविल लाइंस में तमाम दुकानों के साथ लकी स्वीट हाउस की लूट देखकर उस आंदोलन से मेरा मोहभंग हो गया। इस आंदोलन और उसके बाद के दमन और गिफ्तारियों के बारे में फिर कभी। आपातकाल के पहले छात्रों की गिरफ्तारी सम्मान के साथ होती थी।

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