Saturday, June 12, 2021

लल्ला पुराण 391 (वाम)

 कुछ लोगों को बात-बेबात और हर बात पर वाम का दौरा पड़ता रहता है। इनके लाभार्थ मैंने कई बार 'वाम क्या है' पर विमर्श के लिए पोस्ट शेयर किया। लेकिन दौरे से पीड़ित या तो विमर्श से दूर रहे या कुछ ऊल-जलूल निरर्थक कमेंट के विषयांतर से विमर्श विकृत करने का प्रयास किए। एक बार थोड़ा सार्थक विमर्श चला जिसके कुढ हिस्से अध्ययनशील, युवा मित्र Raj K Mishra ने अपने ब्लॉग में संकलित किया। इनके ब्लॉग से लिंक कॉपी कर, उस विमर्श को फिर से जारी रखने के लिए यहां शेयर कर रहा हूं।

विमर्श की शुरुआत मैं ग्रुप में सावित्री बट पूजा के बहाने संस्कृति के नाम पर प्रथा की पक्षधरता पर विमर्श के संदर्भ में फ्रांसीसी क्रांति के दौरान वाम शब्द की उत्पत्ति के व्यापक अर्थ में इस बात से करता हूं कि प्रथा के यथास्थितिवाद के समर्थक दक्षिणपंथी हैं तथा उसकी आलोचनात्मक समीक्षा के पक्षधर वामपंथी। गौरतलब है जब सती प्रथा और बालविवाह जैसी कुरीतियों के विरुद्ध कानन बने थे तो उनका भी विरोध संस्कृति और परंपरा के नाम पर हुआ था। आज मुझे नहीं लगता कोई भी सती प्रथा या बालविवाह का समर्थन करेगा। स्व और स्व के इतिहास दोनों ही अर्थों में विकास के लिए आलाचनात्मक, आत्मावलोकन आवश्यक है। पुरातन का मोह हमें यथास्थिति के पक्ष में तर्क-कुतर्क गढ़ने को प्रेरित/बाध्य करता है। जी हां, पतियों के लिए पत्नियों के व्रत के पर्वों की पितृसत्तात्मक संस्कृति की पक्षधरता दक्षिणपंथ है और उनकी आलोचनात्मक समीक्षा वामपंथ।

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