Tuesday, June 29, 2021

शिक्षा और ज्ञान 319 (युद्ध)

 जी चाहे सिकंदर हो, चंद्रगुप्त या शिवाजी, लूट युद्धों का ऐतिहासिक रिवाज रहा है। युद्ध हिंदू-मुसलमान नहीं, राजनैतिक होते थे। अगर इतिहास आपने पढ़ा हो तो शिवाजी जी की सेना में चौथ-विवाद की बात पढ़ा होगा, वैसे संघियों का इतिहासबोध, आम तौर पर तथ्यात्मक नहीं अफवाहजन्य होता है। राजशाहियों में सैनिक प्रायः mercenary (भाड़े के) होते थे। मध्यकाल में मौजूदा केंद्रीय बिहार सैनिक आपूर्ति का गढ़ होता था। शेर खान (जो बाद में शेरशाह शूरी नाम से मशहूर, अप्रतिम अंतर्दृष्टि का शासक बना जिसने अपने बहुत कम समय के शासन में यातायात, लगान, डाक व्यवस्था, सिंचाई आदि क्षेत्रों में अभूतपूर्व योगदान दिया) बहुत सैनिक ब्रोकर था। बक्सर सैनिक-व्यापार (मिलिट्री ट्रेड) का बहुत बड़ा केंद्र था। औरंगजेब की सेना में भी भोजपुरिया सिपाहियों का बोलबाला था और शिवाजी की सेना में भी।


शिवाजी क्षत्रपति बनने के बाद अपनी सेना में सुधार के रूप में सैनिकों की 'चौथ' खत्म कर वेतन बढ़ाने और चौथ खत्म करने का प्रस्ताव रखा। भोजपुरिया सैननिकों ने तलवारे म्यान में डाला और शिवाजी को जयराम बोलकर उनकी सेवा छोड़कर किसी और राजा की सेवा में जाने की योजना बनाने लगे। बोले कि वे प्रमुखतः 'चौथ' के लिए ही लड़ते हैं। क्या था यह 'चौथ' का रिवाज? युद्ध में लूट के माल (booty) का चौथाई सैनिकों में बंटता था।

ऊपर शेर खान जिक्र आया तो दो शब्द उसके बारे में ही। शेर खान विभिन्न राजाओं को भोजपुरिया सैनिक सप्लाई करता था। उसे लगा कि शासन तलवार यानि सेना के बल पर ही स्थापित किया जाता है। और वह दूसरों के लिए सेना तैयार करता है तो अपने लिए ही क्यों न करे? और उसने अपनी सेना तैयार करने का निर्णय कर लिया और बाबर के उत्तराधिकारी हुमायूं के क्षेत्रों पर हमले से कब्जा शुरू कर दिया तथा बक्सर की निर्णायक युद्ध के बाद वह दिल्ली के तख्त पर काबिज हो गया।

लगे हाथ शेरशाह के बारे में सासाराम इलाके में प्रचलित एक किंवदंति की भी चर्चा कर दूं। बक्सर युद्ध के पहले शेरशाह के सैनिक खंदक खोद रहे थे। हुमायूं के वजीर ने सोचा शेरशाह से बातचीत के जरिए मामला सुझाव दिया। हुमायूं ने उसे शेरशाह के पास भेजा। उसने शेरशाह का टिकाना पूछने के लिए खंदक खोद रहे एक मजदूर को बुलाया। उसने पलड़ा (टोकरी) पलटकर उसे बैठने को कहा और हाथ-मुंह धोकर आ गया। वजीर यह देखकर बहुत हैरान हुआ और वापस जाकर हुमायूं को यह कहते हुए युद्ध न करने की सलाह दी कि जो राजा खुद खंदक खोद रहा हो उससे जीतना मुश्किल है। हुमायूं ने दुश्मन की तारीफ करने के लिए वजीर को डांट दिया। और बक्सर की निर्णायक लड़ाई का इतिहास सब जानते हैं।

कहने का मतलब यह कि मध्यकाल तक युद्धों के इतिहास में लूट-पाट का रिवाज अपवाद नहीं नियम था।

24.06.2021

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