Wednesday, June 9, 2021

मार्क्सवाद 246 (ऐतिहासिक भौतिकवाद)

 एक मित्र ने समता और सामूहिकता पर तंज किया कि उसका इंतजार तो 1848 (कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो लिखे जाने का वर्ष) से ही हो रहा है। ऐसा उन्होंने अल्पज्ञता के चलते किया क्योंकि समता-स्वतंत्रता-सामूहिकता के अभियान का इतिहास उतना ही पुराना है जितना पुराना वर्गीय असमानता तथा वर्ग वर्चस्व का है। प्राचीन यूनान में जहां एक तरफ प्लेटो और अरस्तू जैसे असमानता और दासता के पैरोकार थे तो दूसरी तरफ डेमोक्रेटस, स्टोइक्स और इपिक्यूरियस जैसे स्वतंत्रता, समानता और सामूहिकता के भी पैरोकार थे। प्रचीन भारत में जहां एक तरफ वर्णाश्रमी वर्चस्व के पैरोकार थे तो दूसरी तरफ चारवाक और बुद्ध जैसे समानता और सामूहिकता के पैरोकार थे। उनके तंज पर मेरी प्रतिक्रिया:


क्रांति कोई सत्य नारायण की कथा नहीं है कि घंटे भर में पंडित जी समापन कर स्वाहा बोल देंगे। हजारों साल की सामंती उत्पादन पद्धति (भारत के मामले में वर्णाश्रमी या एसियाटिक उत्पादन पद्धति) के बाद 500 साल पहले समानता, स्वतंत्रता, भाईचारे के नारे और सबकी समृद्धि के नारे के साथ पूंजीवादी उत्पादन पद्धति का संक्रमणकाल शुरू हुआ जो अभी भी अधूरा है क्योंकि संभावनाएं शेष हैं। अधिकतम मुनाफा के सिद्धांत पर आधारित पूंजीवाद भी अपने पूर्ववर्ती वर्ग व्यवस्थाओं की तरह, इस मामले में, दोगली व्यवस्था है कि यह जो कहती है, कभी नहीं करती और जो करती है कभी नहीं कहती। इसने सामंतवाद से निपटने के लिए नारा तो समानता, स्वतंत्रता, भाई चारे का दिया लेकिन असमानता, श्रमशक्ति बेचने की गुलामी (वेज स्लेवरी) तथा शोषण दमन मुनाफा कमाने के इसके मौलिक सिद्धांत में ही अंतर्निहित है। 500 सालों में भी अभी तक सामंतवाद के विरुद्ध पूंजीवादी क्रांति अधूरी ही है, भारत में तो पूंजीवाद ने वर्णाश्रमी सामंतवाद से लड़ने की बजाय इसका दामन थामकर अपना क्रोनी (सरकार की मदद से लूट) विकास कर रहा है। पूंजीवाद भूमंडलीय व्यवस्था है तथा उसका भविष्य का विकल्प भी भूमंडलीय ही होगा। छिटपुट-समाजवादी क्रांतियों का इतिहास तो अभी लगभग 100 साल ही पुराना है। सामंतवाद से पूंजीवाद का संक्रमण एक वर्ग समाज से दूसरे वर्ग समाज का संक्रमण है। पूंजीवाद से साम्यवाद का संक्रमण गुणात्मक रूप से भिन्न एक वर्ग समाज से वर्गविहीन समाज का संक्रमण है, जो जाहिर है ज्यादा जटिल होगा। लेकिन प्रकृति का द्वंद्वात्मक नियम है कि जिसका भा अस्तित्व है, उसका अंत निश्चित है तथा पूंजीवाद अपवाद नहीं है। इसका कोई टाइमटेबल नहीं तय किया जा सकता क्योंकि इतिहास की गति ज्योतिष की भविष्यवाणी से नहीं निर्धारित होती, वह (इतिहास)अपने गतिविज्ञान के नियम अपनी यात्रा में खुद विकसित करता है। निराश मत होइए, पूंजीवाद का अंत अवश्यंभावी है तथा भविष्य के समतामूलक समाज की रूपरेखा भविष्य की पीढ़ियां खुद तैयार करेंगी। हमारा काम
भक्तिभाव से मुक्ति के इंसानियत के अभियान में अपना योगदान करते रहना है। सादर।

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