Saturday, June 12, 2021

शिक्षा और ज्ञान 313 (वट सावित्री पूजा)

 एक सज्जन ने वट सावित्री पर्व में पतियों की दीर्घायु के लिए पत्नियों के व्रत के औचित्य में लिखा कि किस तरह पति सत्यवान को दिल का दौरा पड़ने पर पत्नी सावित्री ने उनके सीने पर माथा पटक पटक कर "वैज्ञानिक" तरीके से उनकी जान बचाई थी तथा यह पर्व किस तरह पर्यावरण के संरक्षण का पर्व है। सभी किस्म के धार्मिक अपनी धार्मिक प्रथाओं तथा रीतियों और आस्थाओं को वैज्ञानिक प्रमाणित करने की नाकाम कोशिस करके विज्ञान की श्रेष्ठता प्रमाणित करते हैं। उस पर:


सांस्कृतिक वर्चस्व, वर्चस्वशाली वर्ग के बुद्धिजीवी तैयार करते हैं, उन मूल्यों की पुष्टि के लिए साहित्य रचते हैं। प्राचीन यूनानी बुद्धिजीवी अरस्तू ने उस समय के यूनानी सामाजिक मूल्यों की रक्षा में गुलामी और स्त्री की अधीनस्थता के सिद्धांत गढ़ने के लिए उस तरह के दृष्टांत रचे क्योंकि उसे अपने समकालीन यूनानी यथास्थिति का औचित्य साबित करना था। उसके गुरु प्लेटो ने स्त्रियों में प्रतिभा की संभावनाओं का आविष्कार किया और अपने कालजयी ग्रंथ रिपब्लिक में उनकी शिक्षा एवं शासन के अधिकार का सिद्धांत दिया तो उनपर कुपित हो गए कि स्त्रियों को गुलाम बनाने की पुरुषों की ऐतिहासिक उपलब्धि को उन्होंने कलम के एक झोंके में गंवा दिया। अरस्तू ने दास-श्रम पर पल्लवित यूनानी मर्दवादी समाज में दासता के औचित्य के ही नहीं, स्त्रियों के दोयम दर्जे के औचित्य के भी सिद्धांत गढ़े। हर लेखन सोद्देश्य होता है, मैं कुछ भी निरुद्देश्य नहीं लिखता, न ही आप लोग। मुझे पतियों के लिए पत्नियों के एकतरफा व्रत के त्योहार में विषमता दिखती है, इंगित करता हूं, जिन लोगों को यथास्थिति की हर बात उचित ही लगती है, वे उसका महिमा मंडन करते हैं। हमारी कोई खेत-मेड़ की लड़ाई नहीं है, विचारों की असमति का द्वंद्व है और प्रकृति तथा ब्रह्मांड ही द्वंद्वात्मक हैं। प्राचीन यूनान या तमाम अन्य समाजों की ही तरह हमारा समाज भी पितृसत्तात्मक (मर्दवादी) समाज रहा है तथा सामाजिक मूल्यों के बौद्धिक एवं दार्शनिक औचित्य के लिए पुराण और शास्त्र रचे जाते रहे हैं। सावित्री या सीता की पतिव्रतत्व की पौराणिक कहानियां तथा तदनुसार व्रतों एवं पर्वों की प्रथाएं इसी तरह के सांस्कृतिक वर्चस्व की परियोजना के हिस्से हैं। पति द्वारा पत्नी के लिए यमराज से लड़ने या पर-स्त्री से संपर्क के संदेह में घर या देश से निष्कासन की कोई पौराणिक कहानियां नहीं मिलतीं, क्योंकि पत्नीव्रता का नहीं बहुपत्नी प्रथा के सामाजिक मूल्य रहे हैं। ये बातें किसी की भावनाओं को आहत करने के लिए नहीं लिखा हूं, फिर भी किसी की भावना आहत हुई हो तो क्षमाप्रथना। सादर।

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